
भगवान श्री कृष्ण की दिव्य रास लीला
।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। भगवान श्री कृष्ण की दिव्य रास लीला में प्रत्येक गोपी यही सोच रही थी
।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। भगवान श्री कृष्ण की दिव्य रास लीला में प्रत्येक गोपी यही सोच रही थी
देखे जब मन-मोहन मोहन प्रेमानन्द-सुधा-सागर।नित-नवरूप-महोदधि, गुण-निधि सकल कलामय, नट-नागर॥ शब्द एक निकला नहिं मुखसे, नेत्र एकटक रहे निहार।बिगलित हुआ हृदय
हमने उस परमात्मा को नटराज कहा है l एक मूर्तिकार, मूर्ति बनाता है, उसके बाद मूर्ति अलग है और मूर्तिकार
प्रभु के नाम महिमा की कथा को अवश्य पढे… एक बार वृन्दावन के मंदिर में एक संत अक्षय तृतीया के
तुम झोली भर लो भक्तों रंग और गुलाल से होली खेलेंगे अपनेगिरधर गोपाल से कोरा-कोरा कलश मंगाकर…उसमें रंग घुलवाया,लाल गुलाबी
रंग डार गयो री मोपे सांवरा, मर गयी लाजन हे री मेरी बीर, मैं का करूँ सजनी होरी में, रंग
अहंकार को दूर भगाएं प्रभु भक्ति के रंग से प्रेम की होली खेलें सतगुरु के संग संग में सेवा का
होली के दोहे
रंग रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलालवृंदावन होली हुआ सखियाँ रचें धमाल होली राधा श्याम की औ
आज तो किशोरी जी से फाग खेलने के चक्कर में यह नटखट कान्हा उल्टे ही फँस गयो। किशोरी जी भोरी
मेरे धन-जन-जीवन तुम ही, तुम ही तन-मन, तुम सब धर्म।तुम ही मेरे सकल सुखसदन, प्रिय निज जन, प्राणोंके मर्म॥ तुम्हीं