भजन (Bhajan)

तात राम नहिं नर भूपाला।

।। परात्पर ब्रह्म श्री राम ।। तात राम नहिं नर भूपाला।भुवनेस्वर कालहु कर काला।। ब्रह्म अनामय अज भगवंता।ब्यापक अजित अनादि

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जब ते राम प्रताप खगेसा।

।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड चौपाई-जब ते राम प्रताप खगेसा।उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा।। पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका।बहुतेन्ह सुख बहुतन मन

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कीजै कृपा की कोर

हे प्रेमरस से युक्त किशोरी जी! हे किशोर अवस्था वाली राधिके! हे प्रेमरस में सराबोर वृषभानुदुलारी! मेरे ऊपर भी कृपा

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इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।।

।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। सुनु कपीस अंगद लंकेसा।पावन पुरी रुचिर यह देसा।। जद्यपि

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शंकर भगवान अराधना

शीश गंग अर्धग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥शीतल मन्द सुगन्ध पवन, बह बैठे हैं

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