
अरे नैया के खेवनहार हमें जाना हैं परले पार
अरे नैया के खेवनहार हमें जाना हैं परले पार हरि चरणों की धुली लगते तिर गई गोतम नार अरे नैया
अरे नैया के खेवनहार हमें जाना हैं परले पार हरि चरणों की धुली लगते तिर गई गोतम नार अरे नैया
है आँख वो जो श्याम का दर्शन किया करे,है शीश जो प्रभु चरण में वंदन किया करे। बेकार वो मुख
बरसाना मिल गया है,मुझे और क्या कमी है,श्री जी भी तो मिलेगी,मुझको तो ये यकीं है,बरसाना मिल गया हैं,मुझे और
।। परात्पर ब्रह्म श्री राम ।। तात राम नहिं नर भूपाला।भुवनेस्वर कालहु कर काला।। ब्रह्म अनामय अज भगवंता।ब्यापक अजित अनादि
।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड चौपाई-जब ते राम प्रताप खगेसा।उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा।। पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका।बहुतेन्ह सुख बहुतन मन
हे प्रेमरस से युक्त किशोरी जी! हे किशोर अवस्था वाली राधिके! हे प्रेमरस में सराबोर वृषभानुदुलारी! मेरे ऊपर भी कृपा
जय माता दी जय माता दी, करुणामयी मां कृपामयी मां ममता बरसायेंगे, तू प्रेम से गा प्यारे जय माता दी
।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। सुनु कपीस अंगद लंकेसा।पावन पुरी रुचिर यह देसा।। जद्यपि
हे परमात्मा राम मै आपकी वन्दना करती हूं एक भक्त परमात्मा राम के भाव मे कैसे वन्दना करता है हे
शीश गंग अर्धग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥शीतल मन्द सुगन्ध पवन, बह बैठे हैं