
हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल केशव माधव गोविन्द बोल॥ नाम प्रभु का है सुखकारी,पाप काटेंगे क्षण में भारी।

हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल केशव माधव गोविन्द बोल॥ नाम प्रभु का है सुखकारी,पाप काटेंगे क्षण में भारी।
श्री राम लक्ष्मण व सीता सहित चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे ! राह बहुत पथरीली और कंटीली थी

करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी।जिमि बालक राखइ महतारी॥ प्रभु श्री राम देवर्षि नारदजी को समझाते हुए कहते हैं कि..हे मुनि!

कान्हा तोरी सांवली सुरतिया पे वारी सखी री मैं तो कारे रंग पे वारी वारी रे वारी रे मैं तो

सनेही एक विहारी-विहारिनि।एक प्रेम रुचि रचे परस्पर, अद्भुत भाँति निहारिनि॥तन सौं तन, मन सौं मन, अरुझ्यौ, अरुझनि वारनि-हारनि।यह छबि देखत

नैनन में श्याम समाए गयो,मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।लुट जाउंगी श्याम तेरी लटकन पे,बिक जाउंगी लाल तेरी मटकन

जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा।क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।। हरि हर निंदा सुनइ जो काना।होइ पाप गोघात समाना।। कटकटान कपिकुंजर
हम भगवान पर पूर्ण विशवस करे। रामजी और कृष्णजी को हम भगवान कहते है लेकिन पूर्ण रूप से भगवान पर

माता पार्वती की स्वीकारोक्ति – श्री राम ब्रह्म हैं।शंकर जी कहते हैं –तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी।कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी।।हे

खेलत मदन गोपाल बंसत ।नागरि नवल रसिक-चूडामनि, सब बिधि रसिक राधिका कंत ॥नैन-नैन-प्रति चारु बिलोकनि, बदन-बदन-प्रति सुंदर हास ।अंग-अंग प्रति