
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥मनका
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख
मेरो मन वृन्दावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में अटको।मेरो मन वृंदावन में अटको, मेरो मन हरि चरणन में
धरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास । निरख चंद्र मुख चांदनीमुग्ध मगन आकाशधरती पर ही स्वर्ग काहोता है आभास
एक बार की बात है तुलसीदास जी सत्संग कर रहे थे अचानक वे मौज में बोलेघट में है सूझत नहीं
राम नाम नित हृदय धरि जपत रहै सिय राम।। नहिं मम बुद्धि,सबद नहिं,नहि हिय मोरे भाव।नहिं छमता,नहिं कवितई, मातु चरन
सैर करन को चली गौरां जीनारद मुनि ने दी मती, कहे गौरां जी हमें सुना दो, अमर कथा शिव मेरे
सैर करन को चली गोरा जीनारद मुनि ने दी मती, कहे गोरा जी हमें सुना दो, अमर कथा शिव मेरे
अब हम भगवान के हो गए, भगवान हमारे हैं। यदि नाथ का नाम दयानिधि है,तो दया भी करेंगे कभी न
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद गुरू ओर सतगुरु में रात दिन का अन्तर है।गुरूवो होता है जो हमारे जीवन
मनमोहन तुझे रिझाऊं, तुझे नित नए लाड लडाऊं,बसा के तुझे नयन में, छिपा के तुझे नयन में। गीत बन जाऊं