माता पार्वती की स्वीकारोक्ति श्री राम ब्रह्म हैं।शंकर जी कहते हैं –
माता पार्वती की स्वीकारोक्ति – श्री राम ब्रह्म हैं।शंकर जी कहते हैं –तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी।कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी।।हे
माता पार्वती की स्वीकारोक्ति – श्री राम ब्रह्म हैं।शंकर जी कहते हैं –तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी।कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी।।हे
खेलत मदन गोपाल बंसत ।नागरि नवल रसिक-चूडामनि, सब बिधि रसिक राधिका कंत ॥नैन-नैन-प्रति चारु बिलोकनि, बदन-बदन-प्रति सुंदर हास ।अंग-अंग प्रति
भक्त मन को, दिल को, नैनो को, राम नाम अमृत का रसपान कराना चाहता है । आत्मा कहती हैं, कि
राम राज्य का अर्थ है हमारे मन में पवित्रता हो। हमारे अन्तर्मन मे भगवान राम के आदर्श हो। जीवन में
जब छोड़ चालू इस दुनिया को, होंठो पे नाम तुम्हारा हो,चाहे स्वर्ग मिले या नरक मिले, हृदय में वास तुम्हारा
हे प्रभु हे शिव हे हे महादेव अजन्मा अनादि आपको आप को मेरा नमस्कार हैं नमस्कार है ‘नमस्कार हैं ।जो
होठों पर रहता है यही नाम सुबह शाममेरे राम मेरे राम।सबका रखवाला है राम नाममेरे राम मेरे रामजिसके ह्दय में
मै प्रथम राम राम मेरे भगवान तुमको करती हूं। हे परमात्मा तुम मेरी आत्मा के स्वामी हो। हे परम पिता
तेरा नाम साझ सवेरे रटू , राधा रमण मेरे राधा रमण मेरे, राधा रमण मेरे,राधा रमण मेरे, राधा रमण मेरेसिर
।।जय सियाराम ।।जय राम रमा रमनं समनं ।भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥अवधेस सुरेस रमेस बिभो ।सरनागत मागत पाहि प्रभो