
रघुवर हिरदय में आइ के वास करौ।
भवभीति की रीति हरौ रघुवर हिरदय में आइ के वास करौ।पद प्रीति की होय प्रतीति मोहे मम नैनन आइ निवास
भवभीति की रीति हरौ रघुवर हिरदय में आइ के वास करौ।पद प्रीति की होय प्रतीति मोहे मम नैनन आइ निवास
॥ दोहा ॥बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम,राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥कीरति गाथा जो पढ़ें
ॐ श्रीरामजयम्। ॐ भूमिपुत्र्यै च विद्महे, रामपत्न्यै च धीमहि। तन्नः सीता प्रचोदयात्।। सीता श्रीरामसज्जाया सानन्दवाक्स्वरूपिणी।सा सम्पूर्णसुमाङ्गल्या ज्वलदग्निशुचिस्फुरा।।१।। मदम्बा श्रीमहालक्ष्मीर्मच्चित्तविलसत्प्रभा।क्षमागुण्यातिसान्त्वा मा
राम जन्म चोपाई मै स्वर्ण भूमि का कण -कण सारा, राम जन्म से मन है हर्षाया ।परम अयोध्या सरयू बहती,
श्री राम जय राम जय जय राम- यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम
जय राम रमारमणं समनं । भव ताप भयाकुल पाहि जनं ॥अवधेस सुरेस रमेस विभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥जय रघुनन्दन जय घनशाम। पतित पावन सीताराम॥भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख
एक बार की बात है तुलसीदास जी सत्संग कर रहे थे अचानक वे मौज में बोलेघट में है सूझत नहीं
राम नाम नित हृदय धरि जपत रहै सिय राम।। नहिं मम बुद्धि,सबद नहिं,नहि हिय मोरे भाव।नहिं छमता,नहिं कवितई, मातु चरन