दादी के चरणों में आसूँ
दादी के चरणों में गिरकर आसूँ मोती बन जाते, हो जाते बेकार अगर ये कही और बह जाते, दादी के
दादी के चरणों में गिरकर आसूँ मोती बन जाते, हो जाते बेकार अगर ये कही और बह जाते, दादी के
पर्चो बाँटे दादी बैठी बैठी झुंरु के दरबार, हाथ उठा लियो जिहने जिहने लेने की दरकार, दादी जी की सबपे
चन्द्र तपे सूरज तपे उद्गन तपे आकाश इन सब से बढ़ कर तपे सतियों का सुप्रकाश जय जय श्री रानी
सुरमा छाई रात अंधेरी जी घबराव ए आजा म्हारी दादी म्हान . ओल्यूं आव ए था बिन ना दादी म्हारो
झुंझुन में बिगड़ी सवर ती नहीं, बात ये गले से उतर ती नहीं, दर पे यो इसके सुनाई न होती,
जान लिया मेरी माँ, कहा पर रहती हैं, हो सेवा गुणगान , वहां पर रहती हैं, मा कृपा से माँ
टीडा गेला दो- दो बहना दरबार अनोखा, है क्या कहना भगतो के बनते जहाँ हैं बिगड़े काम ढांढण धाम,वो है
हम हाथ उठा कर कहते है हम हो गए झुँझन वाली के, तेरे चलते शान और शौख़त है मेरा सब
सुन्दर कहलाते जो इस जग के नज़ारे हैं तेरी चुनरी में हे माँ वो चाँद सितारे हैं सुन्दर कहलाते जो
माँ देख तेरा शृंगार करे दिल नाचन का, नाचन का दिल नाचन का, चाहे देखु जितनी वार करे दिल नाचन