मैं बालक हु साई मेरी माता
मैं बालक हु साई मेरी माता, तेरा है मुझसे जन्मो का नाता, मैं बालक हु साई मेरी माता, शिरडी नगरिया
मैं बालक हु साई मेरी माता, तेरा है मुझसे जन्मो का नाता, मैं बालक हु साई मेरी माता, शिरडी नगरिया
साईं ने दरबार लगाया दर्शन तो कर लें दे, मेनू नाच लेंदे मेनू नच लेंदे, साईं ने दरबार लगाया दर्शन
साई नाम का जग है दीवाना, करता सब की मुरादे है पूरी, इसकी रहमत का देखा नजारा, आस रहती न
कुझ मंगना नहीं सैया तेरे भाजो मैं तेरे कोलो तनु मंगना, जग सामने वे वाली सारे जग दा ते फिर
मेरी किस्मत का खोलो दरवाजा, रुका हु मैं अकेले में, साई बोले तू शिरडी में आजा फसा है क्यों झमेले
मैंने माँगा था क्या मुझको क्या मिल गया, साईं तुम मिल गए तो खुदा मिल गया, मेरी रहो में कांटे
साई तेरा ही हमको सहारा है, तेरे दम से ही अपना गुजारा है, है भरोसा तेरा तू ही दाता मेरा
साईं रहम नजर करना बच्चो का पालन करना, जाना तुमने जगत पसारा सब ही झूठ ज़माना, साईं रहम नजर करना
तेरे चलाये से चले नैया गरीब की , तूने बदल दी है मेरी रेखा नसीब की, आया जो तेरे दर
मेरे वीर दा रखना ख्याल ये अरदास मेरी, कदे हॉवे न साई बेटी ये उदास तेरी, माँ दा दुलारा अंग