शिव कैलाशो के वासी धानी धारो के राजा
शिव कैलाशो के वासी धानी धारो के राजा, शंकर संकट हरना तेरे कैलाशो का अंत न पाया, अंत व्यंत तेरी
शिव कैलाशो के वासी धानी धारो के राजा, शंकर संकट हरना तेरे कैलाशो का अंत न पाया, अंत व्यंत तेरी
जो पीयेगा भुट्टी शिव नाम की, उसे लागे लगन शिव के नाम की, जो पीयेगा भुट्टी शिव नाम की, भुटटी
शिव की बारात आई रे शिव की बारात आई रे, खुशियों की रात आई रे शिव की बारात आई रे,
आज फूला वांगु साहनु महकाता शिवा जी तेरे डमरू ने, साहनु भगता नु मस्त बना ता शिवा जी तेरे डमरू
त्रिपुरारी ओ भोले भंडारी आओ न विषधारी हमारी पुकार पे, हम सब आये है तुम्हारे द्वार पे गले में बाबा
देवो के देव है महादेव है महान कैलाश वासी धुनि रमाये गले में सर्प और है मुंड माल, देवो के
गोरा के तन्ने हठ करली, तूँ क्यों घोटे ना मेरी भांग, घोटे ना मेरी भांग गोरा घोटे ना मेरी भांग,
मेरी भांग में घोटा ला गोरा आज भर भर लोटा पया गोरा, मने क्यों जयादा तरसावे से मेरी मस्ती बढ़
शिव जी को एक लोटा जल जो चढ़ाता है बिन मांगे वो बाबा आपसे पाता है जहां भी हो दरबार
तेरी जय हो शंकर भोला, तेरी जय हो शंकर भोला अंग विभूति सर्प की माला डमरू जिसके हाथ में, माथ