
अंग अंग झाला पांडुरंग
विठल विठल विठल विठला, पांडू रंग विठला पंडीनाथ विठाला, विठल विठल विठल विठला, रंगला अभंग, उधळला भक्तिरंग, अंग अंग झाला

विठल विठल विठल विठला, पांडू रंग विठला पंडीनाथ विठाला, विठल विठल विठल विठला, रंगला अभंग, उधळला भक्तिरंग, अंग अंग झाला

प्रभु अवतारी है,ओ लीला न्यारी है,ओ परचो भारी है, रामसापीर रामसापीर…….. के या जो दुनिया है, वन है काटा रो,

समाय गई रे समाय गई रे मोरी सुरती पिया में समाय गई रे जब से संग सतगुरु जी की पाई

नाम हरी का जप ले बन्दे, फिर पीछे पछतायेगा । तू कहता है मेरी काया, काया का घुमान क्या ।

दरद बन करके जिसके दिल मे सुंदर श्याम आता है । वही बंदा मुसीबत में किसी के काम आता है

तुने अजब रचा भगवान खिलौना माटी का । कान दिए हरी भजन सुनन को । तू मुख से कर गुणगान

भला किसी का कर ना सको तो, बुरा किसी का ना करना । पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे

तन की चादर पुरानी हुई बाबरे अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा, कर यतन कर्म का दाग धोया नहीं

धुपां दा नहीं डर मैंनु , छावां मेरे नाल ने ॥ लोको मेरी माँ दिया, दुआवां मेरे नाल ने ॥

तर्ज- मरुधर में ज्योत जगाय गयो… शेर -चुरू नगर रे माहीने , बणीयो आपरो धाम भक्तो रा दुखड़ा दूर करे