सत्संग वो गंगा है इस में जो नहाते है
सत्संग वो गंगा है इस में जो नहाते है, पापी से पापी भी पावन हो जाते है, ऋषियों ने मुनियो
सत्संग वो गंगा है इस में जो नहाते है, पापी से पापी भी पावन हो जाते है, ऋषियों ने मुनियो
आओ आओ सब मिल इक हो जाओं, भेद भाव और उच नीच को आओ जड़ से मिटाये, इक ईश्वर सब
अरज म्हारी सुणता जाजो जी भीमाजी रा लाल मेहर तुम करता रहेजो जी ग्वाल बाल सब ठाड़ा रहे और नवी
अंत वेले सब तैनू छड़ जाणगे, करम तेरे सामने तेरे औणगे । पहनदा सैं तू पोशाका रेशमी, घटिया जहि चादर
मैया जी मेरी बेटी चली ससुराल, रखना उसका ख़याल हमने दिल के जिस टुकड़े को बाहों का झूला झुलाया माँ
कलगीधर दशमेश पिता जेहा, दुनिया ते कोई होया नही, चार पुत्र ओहने वतना तो वारे, एक वी लाल लकोया नही,
जबर जुलम दी जालमा ने हद मुकाई, होये प्यासे खून दे बई भाई भाई, किती इल्तफिरंगियाँ की वरतेया भाना, साथो
चली जा रही है उम्र धीरे धीरे, पल पल आठों पहर धीरे धीरे। बचपन भी जाए, जवान भी जाए, बुढापा
ओ साइयाँ मेरा वि घर हॉवे उते करमा दी छा होवे, मेरे दरवाजे ते लिखियाँ पंजा पीरा दा ना होवे,
क्या भरोसा है इस ज़िंदगी का साथ देती नहीं यह किसी का सांस रुक जाएगी चलते चलते, शमा बुज जाएगी