काछबा काछ्बी रि कथा
काछबो न काछबी रहता समंद में , लेता हरि रो नाम भक्ति रे कारण बाहर आया , कीन्हा संतो ने
काछबो न काछबी रहता समंद में , लेता हरि रो नाम भक्ति रे कारण बाहर आया , कीन्हा संतो ने
जाग उठा है हर घर हिन्दू, जाग उठी करुणाई, हिन्दू-हिन्दू एक रहेंगे, हिन्दू भाई-भाई, जागा है उसने पाया है, सोया
नाग देवता त्राही माम त्राही माम, वो शंकर के गले को सजाने वाले है, वो विषनु को शैया पर सुलाने
रे मन मस्त सदा दिल रहना आन पड़े सो सहना रे मन मस्त सदा दिल रहना कोई दिन कम्बल कोई
यू कई फेरे माला ने भाया यू कई फेरे माला ने थारा खोल कपट का ताला ने पचे फेर जे
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही शिवजी के करमंडल
अर्जी थे म्हारी सुणल्यो रुनिचे रा धनिया आवो पधारो म्हारे आंगनिया… म्हारे आंगनिया…. अजमाल जी रा कंवरा अर्जी थे म्हारी
रबा मेरेया मेरे हाल दा मेहरम तू अन्दर तू ऐ ते बहार तू, रोम रोम विच तू रबा मेरेया मेरे
बेटा शरवण पाणीड़ो पिलाय , वन में बेटा प्यास लगी, आला लीला बांस कटाया , कावड़ ली रे बनाय, मात
नाम जपन क्यों छोड़ दियां क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा सत्ये वचन क्यों छोड़ दियां झूठे जग में दिल