सब गोकुल के शाम
बन्दे सब गोकुल के शाम कृष्ण वही है कंस वही है वही रावण वही राम हर अंतर में हरी का
बन्दे सब गोकुल के शाम कृष्ण वही है कंस वही है वही रावण वही राम हर अंतर में हरी का
साधु लडे रे शबद के ओटै तन पर चोट कोनी आयी मेरा भाई रे साधा करी है लड़ाई पाँच पच्चीस
मूर्ख बन्दे क्या है रे जग में तेरा, ये तो सब झूठा सपना है कुछ तेरा न मेरा, मूर्ख बन्दे
जीहदे साइयाँ दी झंजर पै जंदी, ओ फ इको जोगी रह जंदी, ओह रूह फिर दर दर भज दी न,
मेरे दाता के दरबार में सब का खाता है जितना जिसके भ्ग्ये में लिखा उतना पाता है, मेरे दाता के
बिन भजन के जगत में तू प्राणी, मोक्ष पाने के काबिल नहीं है, क्या यही मुख तू लेकर के जाए,
ये गुजर जाएगा पल गुजर जाएगा जीवन फिर से सभी का सुधर जाएगा खोफ का जो बसा मन में मंजर
मन के साधे सब सध जाये, मुक्ति, मोक्ष,स्वर्ग मिल जाये. निर्मल मन तो काया निर्मल, दाग ना मन तू लगा..
ताती वाओ ना लगई पार बह्म शरणाई, चौ गिर्द हमारे राम का दुख लगे ना भाई, सतगुरु पूरा पेटेया, जिन
नहीं गंगा सी मैं पावनकैसे चरण पखारूँनहीं दृष्टि ऐसी भगवनदो क्षण तुम्हें निहारूँ कोई जप तप नहीं है मेरासाधना मेरी