विविध भजन (Vividh Bhajan)

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हम मोड़ने चले हैं

हम मोड़ने चले हैं युग की प्रचंड धारा, गिरते हैं उठते-उठते, हे नाथ दो सहारा। दुवृत्तियाँ बढ़ी हैं, उनको उखाड़ना

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करता रहूँ गुणगान

करता रहूँ गुणगान मुझे दो ऐसा वरदान तेरा नाम ही लेते लेते मेरे तन से निकले प्राण तेरी दया से

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