भाव का भूखा हूँ मैं बस भाव ही एक सार है
भाव का भूखा हूँ मैं, बस भाव ही इक सार है। भाव से मुझ को भजे तो, भव से बेडा
भाव का भूखा हूँ मैं, बस भाव ही इक सार है। भाव से मुझ को भजे तो, भव से बेडा
किवे किवे समझांवा इस मन पापी नू पापी नु,किवे किवे समझांवा इस मन पापी नू जे मेरा मन लकड़ी होवे
चाँद जैसे चोथ को मेरा बालमा चाँद से भी है प्यारा मेरा साजना, मैंने उपवास रखा पिया के लिए जो
अनमोल तेरा जीवन यूँही गँवा रहा है किस और तेरी मंजिल,किस और जा रहा है अनमोल तेरा जीवन यूँही गँवा
औरों की सेवा करना बड़े भाव से सेवा करना जिनका पहला काम है ऐसी रूहों को हमारा दिल से प्रणाम
मेरी सुरति सुहागन जाग री, जाग री…हो जाग री…. जाग री…हो जाग री…. मेरी सुरति सुहागन जाग री, क्या तू
सारे गाम में दादा तेरा रुका हो रहया से, यो पालम का छोरा दादा तेरा हो रहया से, घोड़ा तेरा
एक दिन मटिया में सबही के सिंगार होइ जब पिजरा से पंक्षी फरार होइ नाती नाते दार, काम नहीं अइहय
जिनके हृदय श्री राम बसे, तिन और का नाम लियो ना लियो । कोई मांगे कंचन सी काया, मोई मांग
मदिरा पी कर के नाचे ये माहरो भेरू कमली मदिरा पे कर के, भेरू जी ने मदिरा प्यारी सारो जग