मदिरा पी कर के नाचे ये माहरो भेरू
मदिरा पी कर के नाचे ये माहरो भेरू कमली मदिरा पे कर के, भेरू जी ने मदिरा प्यारी सारो जग
मदिरा पी कर के नाचे ये माहरो भेरू कमली मदिरा पे कर के, भेरू जी ने मदिरा प्यारी सारो जग
एक डोली चली एक अर्थी चली, डोली अर्थी से कुछ युँ कहने लगी, रस्ता तूने मेरा क्यों ये खोटा किया
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं वोही मिज़ाज
सुन सुन है म्हारी काया ऐ लाड़ली काया के दाग़ लगाए मत ना कुसंगत मे जाये मत ना या काया
नीले आकाश पे रहने वाले, अपनी छाया में हमको छिपा ले, हम खिलोनों के बस में ही क्या है, जैसे
परिवार का बोझा जो , कंधो पे ढोता है , कोई और नहीं प्यारे , वो बाप ही होता है,
जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए। चाहे बेटा कितना प्यारा हो, उसे
हम तो आए हैं बाबा रूनीचा गांव में प्यार की छाव मे बैठाए रखना रामापीर रामापीर क्या कहूँ मैं बाबा
जो विधि कर्म में लिखे विधाता, मिटाने वाला कोई नहीं, “वक्त पड़े पर गज़ भर कपड़ा, देने वाला कोई नहीं”
दादा खेडे तेरे नाम की खटक कसुती लागी स, ज्योत जगादी तेरी ज्योत जगादी स हलवा पुरी खीर बनाके करया