हे सूर्ये नारायण ये विनती हमारी
हे सूर्ये नारायण ये विनती हमारी, सदा खुश रहे बस तुम्हारे पुजारी, जो चलती है सांसे ये तेरा कर्म है
हे सूर्ये नारायण ये विनती हमारी, सदा खुश रहे बस तुम्हारे पुजारी, जो चलती है सांसे ये तेरा कर्म है
आन बाण और शान है जो अग्रवाल समाज की , मिलकर सारे जय बोलो अग्रसेन महाराज की । मात भगवती
विठल विठल विठल विठला, पांडू रंग विठला पंडीनाथ विठाला, विठल विठल विठल विठला, रंगला अभंग, उधळला भक्तिरंग, अंग अंग झाला
प्रभु अवतारी है,ओ लीला न्यारी है,ओ परचो भारी है, रामसापीर रामसापीर…….. के या जो दुनिया है, वन है काटा रो,
समाय गई रे समाय गई रे मोरी सुरती पिया में समाय गई रे जब से संग सतगुरु जी की पाई
नाम हरी का जप ले बन्दे, फिर पीछे पछतायेगा । तू कहता है मेरी काया, काया का घुमान क्या ।
दरद बन करके जिसके दिल मे सुंदर श्याम आता है । वही बंदा मुसीबत में किसी के काम आता है
तुने अजब रचा भगवान खिलौना माटी का । कान दिए हरी भजन सुनन को । तू मुख से कर गुणगान
भला किसी का कर ना सको तो, बुरा किसी का ना करना । पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे
तन की चादर पुरानी हुई बाबरे अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा, कर यतन कर्म का दाग धोया नहीं