
भाव की प्रधानता”
जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती

जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग- अलग रोग के रोगियों को अलग अलग दवा दी जाती

This story is very close to my heart एक समय श्री रंगनाथ मंदिर के महंत जो की प्रभु के बहुत

।।श्रीहरिः।। सागरके मोती मैं योगी हूँ, मैं जिज्ञासु हूँ, मैं भक्त हूँ-यह भावशरीर है। भावशरीर बननेसे साधन बड़ा सुगम हो

चीरहरण के प्रसँग को लेकर कई तरह की शंकाएँ की जाती हैं, अतएव इस सम्बन्ध में कुछ विचार करना आवश्यक

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि साधन जितने बताए जाते हैं, उन साधनों में भक्ति सर्वश्रेष्ठ

“आत्माsस्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।” (उपनिषद्) भगवान् तो हमारे भीतर ही बैठे हैं, हम उन्हें बाहर ढूँढते-फिरते हैं। एक सेठ दिल्ली से
एक बार एक राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवो में घूम रहा था, पुराने जमाने में राजा

चार कीमती रत्न भेज रहा हूँ..मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे जरुर धन्यवाद कहाेगे..!1.पहला रत्न है:-” माफी “तुम्हारे लिए

क्या आपने कभी ईश्वर से बात करने का प्रयास किया है। अगर नहीं किया है तो आज से ही परमात्मा

Hare Rama Hare Krishna ” प्रेम ही तो एकमात्र वस्तु है इस जगत में जिसमें ईश्वर की थोड़ी झलक है।