बोध कथा (Bodh Katha)

जीवन भीतर है

माओत्से-तुंग ने अपने बचपन की एक छोटी सी घटना लिखी है। लिखा है कि मेरी मां का एक बगीचा था।

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पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,     पुनरपि जननी जठरे शयनम्।इह संसारे बहुदुस्तारे,        कृपयाऽपारे पाहि मुरारेभजगोविन्दं भजगोविन्दं,          गोविन्दं भजमूढमते।नामस्मरणादन्यमुपायं,       नहि पश्यामो भवतरणे ॥

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आख़िरी उपदेश

महात्मा बुद्ध का अंतिम दिन था। वह शांत और स्थिर थे, जैसे स्वयं मृत्यु का भी स्वागत कर रहे हों,

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गणपति खंड कथा

महर्षि वेदव्यासकृत ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणपति खण्ड में श्री गणेश जी के अद्भुत चरित्र का वर्णन है।(उस अद्भुत चरित्र के

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