
मन को जीतने का तप
एक ऋषि यति-मुनि एक समय घूमते-घूमते नदी के तट पर चल रहे थे। मुनि को मौज आई। हम
एक ऋषि यति-मुनि एक समय घूमते-घूमते नदी के तट पर चल रहे थे। मुनि को मौज आई। हम
ना जन्म हमारी मर्जी से होता है ना ही मृत्यु तो जन्म मृत्यु के बीच होने वाली व्यवस्था हमारी मर्जी
एक पहुंचे हुए महात्मा थे। एक दिन महात्मा जी ने सोचा कि उनके बाद भी धर्मसभा चलती रहे इसलिए क्यों
परमात्मा या मुक्ति की प्राप्ति के लिये जितने साधन बतलाये गये हैं, उनको आदर देना ही साध्य को आदर देना
अपना उद्धार होगा, कल्याण होगा, परमात्माकी प्राप्ति होगी, जीवन्मुक्ति होगी – यह सब वास्तवमें कृपासे होगा। यह एकदम सच्ची बात
करमानंद अपने गायन से प्रभु की सेवा किया करते थे। इनका गायन इतना भावपूर्ण होता था कि पत्थर-हृदय भी पिघल
एक धनवान पंडित जी थे जो भगवान बुद्ध से किसी बात को लेकर बड़े नाराज थे। उन्होंने अपनी पत्नी से
अति प्राचीन काल की बात है। द्रविड़ देश में एक पाण्ड्यवंशी राजा राज्य करते थे। उनका नाम था
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को भगवान
एक बार किसी गांव में एक सन्त आये और झोपड़ी बना कर रहने लगे। लोगों से उनका बहुत मतलब नहीं