शरद पूर्णिमा रास
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी

सुबह के समय मथुरा की एक चौबे की पत्नी यमुना में स्नान करने जाया करती थीं। एक दिन चौबे की

एक छोटे से गांव नयासर में एक गरीब औरत अपने परिवार के साथ रहती थी,उस गरीब औरत के एक बेटा

अजन्म सदा जहाँ जन्मलियो,भवसिन्धु परे नहीं जीव बिचारो।चोर बनो जग को रचतावन,रक्षक हूँ जु सँहारन हारो॥निसकर्म सुनों श्रुति सो जिहि

कान्हा नामका एक भंगी था वह नाली साफ करनेका काम किया करता था | वह भगवान् श्रीकृष्णसे बहुत प्रेम करता

सन्त ज्ञानेश्वर और सन्त नामदेव महाराज तीर्थ यात्रा करते-करते हस्तिनापुर (दिल्ली) पहुँचे। सन्तों के आने से दिल्ली में

जहां भगवान ने मइया यशोदा को मुख में दिखा दिया समस्त ब्रह्मांड भगवान कृष्ण प्रतिदिन गोपियों के यहाँ माखन चुराने

प्राण का शाब्दिक अर्थ है “जीवन शक्ति। ” यह वह ऊर्जा है जिसकी हमें सांस लेने, बात करने, चलने, सोचने,

“पुनः महाभाव के सागर में लहर उठी। ये लहर सब कुछ बहा ले गयी, सब कुछ, अब कुछ पता नही

चातुर्मास में वर्ष के चार महीने आते हैं- सावन, भादों, क्वार, कार्तिक। (श्रावण, भाद्र, अश्विन, कार्तिक-मास) चातुर्मास से जुड़ी पौराणिक