
मैत्री निर्वाह
(1) पाण्डव बारह वर्षका वनवास तथा एक वर्षका अज्ञातवास पूर्ण कर चुके थे। वे उपप्लव्य नगर में अब अपने पक्षके

(1) पाण्डव बारह वर्षका वनवास तथा एक वर्षका अज्ञातवास पूर्ण कर चुके थे। वे उपप्लव्य नगर में अब अपने पक्षके

बिल्वमङ्गलके पिताका श्राद्ध था। विवश होकर बिल्वमङ्गलको घर रहना पड़ा। जैसे-तैसे दिन बीता; क्या हुआ, कैसे हुआ – यह सब

श्रीराम शास्त्री अपनी न्यायप्रियताके लिये महाराष्ट्र इतिहासमें अमर हो गये हैं। वे पेशवा माधवरावजी के गुरु थे, मन्त्री थे और

राष्ट्रधर्म सन् 1857 ई0के प्रथम स्वतन्त्रता-समरके दिन थे। रायबरेली के सलोन नामक स्थानपर रहनेवाले अंग्रेजपरिवारको क्षेत्रमें सक्रिय क्रान्तिकारियोंसे खतरा अनुभव

प्राचीन कालमें राजा सर्वमित्रके शासनकालमें महात्मा बुद्ध बोधिसत्त्व-शरीरमें थे। उन्होंने विनम्रता, उदारता, क्षमाशीलता और दान तथा सदाचारके बलपर शक्रपद प्राप्त

गांधीजी उड़ीसा यात्रा ‘हाँ, अब मुझे ठीक तौरपर प्रणाम करो तुम जानते हो कि मेरा रक्तका दबाव 195 है?’ महात्माजीने

पाँचवें नम्बरकी विजेता टीचरने सीटी बजायी और स्कूलके मैदानपर पचास छोटे-छोटे बालक-बालिकाएँ दौड़ पड़े। सबका एक लक्ष्य। मैदानके छोरपर पहुँचकर

प्रत्येक बातकी एक सीमा होती है। कन्याकी अवस्था बढ़ती जा रही थी। महाराजको लोक-निन्दाका भय था। लोग कानाफूसी करने भी

कुपात्रको दानका फल एक कसाई एक गायको दूर कसाईखानेकी ओर ले जा रहा था। बीच रास्तेमें एक जगह गायने आगे

यौवन, धन, प्रभुत्व और अविवेक अनर्थकारी धनाधीश कुबेरके दो पुत्र थे- नलकूबर और मणिग्रीव। कुबेरके पुत्र, फिर सम्पत्तिका पूछना क्या