
तुकारामका गो-प्रेम
संत बहिणाबाई और उनके पति गंगाधरराव अपनी प्यारी कपिलाके साथ देहूमें तुकाराम महाराजके दर्शनार्थ आये थे। रास्तेमें एक दिन गंगाधररावको

संत बहिणाबाई और उनके पति गंगाधरराव अपनी प्यारी कपिलाके साथ देहूमें तुकाराम महाराजके दर्शनार्थ आये थे। रास्तेमें एक दिन गंगाधररावको

दिल्लीका बादशाह गयासुद्दीन बाणसे निशाना मारनेका अभ्यास कर रहा था। अचानक एक बाण लक्ष्यसे भटक गया और एक बालकको लगा।

उपकारका बदला एक सिंह पर्वतकी एक गुफामें सोया हुआ था। संयोगवश एक चूहा उधरसे होकर गुजरते हुए सिंहके नथुनेमें प्रविष्ट

बारहसिंगाका अनुभव एक बारहसिंगा था। एक बार वह एक झरनेमें पानी पीने लगा। पानीमें उसने अपनी परछाई देखी। अपने लम्बे

एक भक्त ब्राह्मणदम्पति थे। उनके मनमें सदा यह इच्छा बनी रहती थी कि ‘हम कहाँ जायँ जिससे हमें भगवान्के दर्शन

असली पुजारी कौन ? एक विशाल मन्दिर था। उसके प्रधान पुजारीकी मृत्युके बाद मन्दिरके प्रबन्धकने नये पुजारीकी नियुक्तिके लिये घोषणा

श्री ताराकान्त राय बंगालके कृष्णनगर राज्यके उच्च पदपर नियुक्त थे। नरेश उन्हें अपने मित्रकी भाँति मानते थे। बहुत समयतक तो

फ्रांसके करडोनिस बेल आइलके प्रकाश-गृहकी घटना है। प्रकाश-गृहमें लालटेन जलानेवाला अचानक बीमार पड़ गया। बड़ी अँधेरी रात थी। उसकी पत्नीने

प्रह्लादने गुरुओंकी बात मानकर हरिनामको न छोड़ा, तब उन्होंने गुस्सेमें भरकर अग्रिशिखाके समान प्रज्वलित शरीरवाली कृत्याको उत्पन्न किया। उसअत्यन्त भयंकर

दक्षिणके पैठण नगरमें गोदावरी-स्नानके मार्गमें ही एक सराय पड़ती थी। उस सरायमें एक पठान रहता था। मार्गसे स्नान करके लौटते