
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारेभजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते।नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे ॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारेभजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते।नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे ॥

एक ब्राह्मण था रोज पीपल में जल चढ़ाता था। पीपल में से लड़की कहती पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी। ब्राह्मण

एक पुरानी कहानीं घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय।एक पलक के कारणे, युं ना कलंक लगाय।एक राजा

भक्तमाल ग्रन्थ रचना जानकी जी की प्रधान सखी चन्द्रकला जी ही आचार्य स्वामी श्रीअग्रदेवजी महाराज के रूप में प्रकट हुई
सत्त्वगुणसम्पन्न जीव साधना में उन्नति करते-करते जब इस दशा पर पहुँच जाते हैं कि श्रीभगवद्दर्शन के बिना उन्हें चैन नहीं

एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन
श्री राधा श्री राधा श्री राधा कश्मीर में तर्क रत्न, न्याय आचार्य पंडित रहते थे। उन्होंने चार पुस्तकों की रचना

एक बहुत प्रसिद्ध लामा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब मैं पांच वर्ष का था, तो मुझे विद्यापीठ

श्रीआनंदी बाई जीश्रीआनंदी बाई जी का मंदिर अठखम्भा पुराने शहर में श्री राधावल्लभ जी के घेरा पुराने मंदिर की दायी

महात्मा बुद्ध का अंतिम दिन था। वह शांत और स्थिर थे, जैसे स्वयं मृत्यु का भी स्वागत कर रहे हों,