Stories

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,     पुनरपि जननी जठरे शयनम्।इह संसारे बहुदुस्तारे,        कृपयाऽपारे पाहि मुरारेभजगोविन्दं भजगोविन्दं,          गोविन्दं भजमूढमते।नामस्मरणादन्यमुपायं,       नहि पश्यामो भवतरणे ॥

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लक्ष्मी माता  की कथा

एक ब्राह्मण था रोज पीपल में जल चढ़ाता था। पीपल में से लड़की कहती पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी। ब्राह्मण

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प्रेम कहाँ है

एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन

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श्री आनंदी बाई जी

श्रीआनंदी बाई जीश्रीआनंदी बाई जी का मंदिर अठखम्भा पुराने शहर में श्री राधावल्लभ जी के घेरा पुराने मंदिर की दायी

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आख़िरी उपदेश

महात्मा बुद्ध का अंतिम दिन था। वह शांत और स्थिर थे, जैसे स्वयं मृत्यु का भी स्वागत कर रहे हों,

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