
*मानस व्याख्या*
धाए धाम काम सब त्यागी।मनहु रंक निधि लूटन लागी।।जनकपुर के निवासियों को जब पता चला कि भूप सुत यानि प्रभु

धाए धाम काम सब त्यागी।मनहु रंक निधि लूटन लागी।।जनकपुर के निवासियों को जब पता चला कि भूप सुत यानि प्रभु

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें

९ मार्च, १९३६ सोमवार, सायंकाल के पाँच बजने वाले थे। जगन्नाथपुरी के अपने आश्रम में ८१ वर्षीय स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी

एक संत एक गाँव से गुजर रहे थे.एक खेत में गेंहू के लहलहाते हुएपौधे देखकर उन्होंने कहा ~भगवान् की कृपा

|| श्री हरि: || गत पोस्ट से आगे …………जब तक साक्षात परमात्मा की प्राप्ति न हो जाय, तब तक पुस्तकों

पिता बेटी के सर परहाथ रख कर बोला-मैं तेरेलिए ऐसा पतिखोजकर लाऊंगा जो तुझे बहुतप्यार करे,तेरी भवनाओं का सम्मानकरे,तेरे दुख

क्षमा क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात lका हरि को घटि गयो जौं भृगु मारी लात ll एक बार

।। श्री रामाय नमः ।। योग वशिष्ठ में एक महत्वपूर्ण आख्यायिका आती है, लीला नाम की रानी के पति का

श्री कृष्णप्राणेश्वरी श्री किशोरी जु माधुर्य सार सर्वस्व की अधिष्ठात्री है । अर्थात माधुर्य जो भी है वह उनकी कृपा

कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं…. उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियों के लिए