
ईमानदार व्यापारी
महातपस्वी ब्राह्मण जाजलिने दीर्घकालतक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक वानप्रस्थाश्रमधर्मका पालन किया था। अब वे केवल वायु पीकर निश्चल खड़े हो गये

महातपस्वी ब्राह्मण जाजलिने दीर्घकालतक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक वानप्रस्थाश्रमधर्मका पालन किया था। अब वे केवल वायु पीकर निश्चल खड़े हो गये

दिया मैंने अपना जीवन दुखियोंके लिये ! उनतीस सालका एक नौजवान अपनी मैजपर फैले कागजपत्र समेट रहा था कि एक

बड़ोदाके शेडखी नामक गाँवमें संत रविसाहेबका निवास था। एक समय उत्तर गुजरातके कुछ प्रेमी भजनीक शेडखीकी ओर जा रहे थे।

कोई स्त्री अपने पिताके घरसे लौटी थी। अपने पतिसे वह कह रही थी- ‘मेरा भाई विरक्त हो गया है। वह

गोदावरीके समीप ब्रह्मगिरिपर एक बड़ा भयंकर व्याध रहता था। वह नित्य ही ब्राह्मणों, साधुओं, यतियों, गौओं और मृग-पक्षियोंका दारुण संहार

एक किसानके बगीचेमें अंगूरका पेड़ था। उसमें प्रत्येक वर्ष बड़े मीठे-मीठे अंगूर फलते थे। किसान बड़ा परिश्रमी, संतोषी और सत्यवादी

दैत्यमाता दितिके दोनों पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु मारे जा चुके थे देवराज इन्द्रकी प्रेरणासे भगवान् विष्णुने वाराह एवं नृसिंह अवतार

पशुओं के प्रति भी दयावान् एक महापुरुष प्रातः कालका समय है। दिनके कोई सात बजे हैं। लोग सुबहकी सैरको जा

श्रीराधाके भक्तोंको एक दिव्य रूप प्राप्त होता है। उसीसे वे उनके दर्शन प्राप्त कर सकते हैं। भक्त श्रीनिवासजी भी श्रीराधाके

परम भक्त श्रीजयदेवजीकी पतिव्रता पत्नीका राजभवनमें बड़ा सम्मान था। राजभवनकी महिलाएँ उनके घर आकर उनके सत्सङ्गका लाभ उठाया करती थीं।