लोभका फल
एक किसानके बगीचेमें अंगूरका पेड़ था। उसमें प्रत्येक वर्ष बड़े मीठे-मीठे अंगूर फलते थे। किसान बड़ा परिश्रमी, संतोषी और सत्यवादी
एक किसानके बगीचेमें अंगूरका पेड़ था। उसमें प्रत्येक वर्ष बड़े मीठे-मीठे अंगूर फलते थे। किसान बड़ा परिश्रमी, संतोषी और सत्यवादी
दैत्यमाता दितिके दोनों पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु मारे जा चुके थे देवराज इन्द्रकी प्रेरणासे भगवान् विष्णुने वाराह एवं नृसिंह अवतार
पशुओं के प्रति भी दयावान् एक महापुरुष प्रातः कालका समय है। दिनके कोई सात बजे हैं। लोग सुबहकी सैरको जा
श्रीराधाके भक्तोंको एक दिव्य रूप प्राप्त होता है। उसीसे वे उनके दर्शन प्राप्त कर सकते हैं। भक्त श्रीनिवासजी भी श्रीराधाके
परम भक्त श्रीजयदेवजीकी पतिव्रता पत्नीका राजभवनमें बड़ा सम्मान था। राजभवनकी महिलाएँ उनके घर आकर उनके सत्सङ्गका लाभ उठाया करती थीं।
समय एक दैविक इलाज एक सनकी राजाकी पत्नीने एक कन्याको जन्म दिया। राजा खुशीसे फूला न समाया। वह बच्चीको देखने
कुपात्रको दानका फल एक कसाई एक गायको दूर कसाईखानेकी ओर ले जा रहा था। बीच रास्तेमें एक जगह गायने आगे
एक वृद्ध महाशय अपने बचपनके साथी श्यामजीके पुत्र रामजीके यहाँ आये। उन्होंने कहा-‘बच्चे रामजी ! दुःख है कि श्यामजीको गुजरे
मनुष्यका चरित्र किसी जिज्ञासुने एक ज्ञानीसे पूछा-‘हर मनुष्यकी बनावट तो एक जैसी होती है, फिर कुछ लोग पतनके गर्त में
एक बार धामणगाँवमें बहुत बड़ा अकाल पड़ा। अ लोग अन्नके लिये तड़प-तड़पकर मर रहे थे। गाँवके पटवारी माणकोजी बोधलासे यह