
मैं किसीका कल्याण करूँ और उसे जान भी न पाऊँ
एक साधु थे। उनका जीवन इतना पवित्र तथा सदाचारपूर्ण था कि दिव्य आत्माएँ तथा देवदूत उनके दर्शनके लिये प्रायः आते

एक साधु थे। उनका जीवन इतना पवित्र तथा सदाचारपूर्ण था कि दिव्य आत्माएँ तथा देवदूत उनके दर्शनके लिये प्रायः आते

‘छाँड़ बिरानी आस’ (पात्र – किसान, किसानका बड़ा लड़का लखन, छोटा लड़का किशुन, चिड़ियाका जोड़ा और उसके दो बच्चे।) किसान-

रविशंकर महाराज एक गाँवमें सवा सौ मन गुड़ बाँट रहे थे। एक लड़कीको वे जब गुड़ देने लगे, तब उसने

एक संत किसी प्रसिद्ध तीर्थस्थानपर गये थे। वहाँ एक दिन वे तीर्थ स्नान करके रातको मन्दिरके पास सोये थे। उन्होंने

एक शराबीको नशेमें चूर लड़खड़ाते पैर चलते देखकर संत हुसेनने कहा- ‘भैया! पैर सँभाल-सँभालकर रखो, नहीं तो गिर जाओगे।’ शराबीने

किसीके पीछे मत भागो एक बार सर्दियोंकी दोपहरमें स्वामी रामतीर्थ घूमने निकले। रास्तेमें उन्होंने देखा कि एक बच्चा अपनी परछाईंको

श्रमका संस्कार एक बार कुछ किसान हल जोतनेके लिये खेतों में गये। इतनेमें चारों ओर काली घटाएँ छा गयीं। किसानोंने

प्रियदर्शी सम्राट् अशोकके जन्म-दिनका महोत्सव था। सभी प्रान्तोंके शासक एकत्र हुए थे। सम्राट्की ओरसे घोषणा हुई—‘सर्वश्रेष्ठ शासक आज पुरस्कृत होगा।’

पहले काशीमें माण्टि नामके एक ब्राह्मण रहते थे। उनके कोई पुत्र न था । अतएव उन्होंने सौ वर्षोंतक भगवान् शङ्करकी

युद्ध समाप्त हुआ। एक-एक करके सभी राजपूत कट मरे ! परंतु किसीने दीनतायुक्त पराधीनता स्वीकार न की दूसरी ओर किलेमें