विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य
विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य पूर्वकालकी बात है, नर्मदाके तटपर गालव नामसे प्रसिद्ध एक सत्यपरायण मुनि रहते थे। वे
विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य पूर्वकालकी बात है, नर्मदाके तटपर गालव नामसे प्रसिद्ध एक सत्यपरायण मुनि रहते थे। वे
मोहमें दुःख रामनगरके एक शाहजीने एक सफेद चूहा पाल रखा था। उसे वे बड़े प्यारसे खिलाते-पिलाते तथा देख भाल किया
कहा जाता है कि किसी नगरका एक नागरिक अतिथियों तथा अभ्यागतोंको अधिक परेशान करनेके लिये विख्यात हो गया था। कहते
राहकी बाधा बहुत पुरानी बात है। एक दिन राजा शौर्यने मुख्य मार्गके बीचोबीच एक बड़ा पत्थर रखवा दिया और स्वयं
शारीरिक बलसे उपाय श्रेष्ठ है किसी वनमें बरगदका एक विशाल वृक्ष था। उसकी घनी शाखाओंपर अनेक पक्षी रहा करते थे।
महान संत श्रीविष्णुचित पेरियार बाल्यकालमे हो भगवद्भक्तिके चिह्न दीखने लगे थे यज्ञोपवीत संस्कार होनेके बाद ही बालकने बिना जाने-पहचाने अपना
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी ” बहुत वर्ष हुए, प्रयागके माघ मेलेमें देवरहा बाबासे एक छोटी-सी कथा सुनी थी।
बाणेश्वर महादेवके समक्ष विद्यापति मधुर कण्ठसे कीर्तन करते रहते और आँखोंसे झर-झर अश्रु झरता रहता कखन हरब दुख मोर। हे
लोकमान्य तिलक कितने स्थितप्रज्ञ थे, यह उनके जीवनकी अनेक घटनाओंसे प्रकट है। एक बार वे अपने कार्यालयमें किसी महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर
बीमारीमें भी भगवत्कृपा बंगालके प्रसिद्ध नेता और धर्मप्राण श्रीअश्विनी कुमारदत्तके गुरुका नाम राजनारायण बसु था। ये बड़े भगवद्विश्वासी भक्त थे।