राक्षसीका उद्धार
पवित्र सह्याचलके अञ्चलमें पहले कोई करवीरपुर नामका एक नगर था। वहाँ धर्मदत्त नामका एक पुण्यात्मा ब्राह्मण रहता था। एक बार
पवित्र सह्याचलके अञ्चलमें पहले कोई करवीरपुर नामका एक नगर था। वहाँ धर्मदत्त नामका एक पुण्यात्मा ब्राह्मण रहता था। एक बार
किसी नरेशके मनमें तीन प्रश्न आये- 1. प्रत्येक कार्यके करनेका महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा ? 2. महत्त्वका काम कौन-सा ? 3.
जैसी नीयत, वैसी बरकत दानधर्मा प्रकृति भी नीयतके अनुसार बरक्कत (बढ़ोत्तरी) देती है, यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है। एक बार
संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव महाराज तीर्थ यात्रा करते-करते हस्तिनापुर (दिल्ली) पहुँचे। संतोंके आने से दिल्लीमें नामदेव कीर्तनकी धूम मच
बहुत दिनोंकी बात है। बगदादमें हसन नामका एक व्यक्ति रहता था। वह खलीफाके यहाँ नौकर था। उसने नौकरीसे बहुत धन
घोर दुष्काल पड़ा था। लोग दाने-दानेके लिये भटक रहे थे। भगवान् बुद्ध से जनताका यह कष्ट सहा नहीं गया। उन्होंने
कुन्तीसहित पाँचों पाण्डवोंको जलाकर मार डालने के उद्देश्यसे दुर्योधनने वारणावत नामक स्थानमें एक चपड़ेका महल बनवाया और अंधे राजा धृतराष्ट्रको
मनोविज्ञानका नियम प्रख्यात मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रॉयड छुट्टीके दिन अपने परिवारके साथ एक पार्कमें घूमने गये। काफी देर टहलते रहे। लौटते
मिथिला नरेश महाराज जनक अपने राजभवनमें शयन कर रहे थे। निद्रामें उन्होंने एक अद्भुत स्वप्न देखा मिथिलापर किसी शत्रु नरेशने
राजपूतोंमें विजयादशमीके दिन आखेट करनेकी प्रथा चली आ रही है। मेवाड़के राणा प्रताप तथा उनके छोटे भाई शक्तसिंह सैनिकोंके साथ