
भगवतीने कन्यारूपसे टटिया बाँधी
भक्तशिरोमणि कविवर रामप्रसाद सेनने अपने जीवनकालमें ही देवी उमाका साक्षात्कार किया था। इतनी थी उनकी प्रगाढ भक्ति एवं भगवतीके चरणोंकी

भक्तशिरोमणि कविवर रामप्रसाद सेनने अपने जीवनकालमें ही देवी उमाका साक्षात्कार किया था। इतनी थी उनकी प्रगाढ भक्ति एवं भगवतीके चरणोंकी

सद्गुरु बच्चा अगर तुम शिष्य बननेको तैयार हुए, तो सारा संसार तुम्हें सद्गुरुओंसे भरा हुआ दिखायी पड़ेगा। वृक्ष, चट्टानें और

एक व्याधने पक्षियोंको फँसानेके लिये अपना जाल बिछाया ! उसके जालमें दो पक्षी फँसे; किंतु उन पक्षियोंने झटपट परस्पर सलाह

महर्षि याज्ञवल्क्य नियमितरूपसे प्रतिदिन उपनिषदोंका उपदेश करते थे। आश्रमके दूसरे विरक्त शिष्य तथा मुनिगण तो श्रोता थे ही, महाराज जनक

एक श्रेष्ठ नारी थी। माता-पिता भगवद्भक्त थे, उन्होंने पुत्रीको उत्तम शिक्षा दी थी। विवाह हो जानेपर पतिगृह आकर उसने सोचा-

[3] नैतिक सामाजिकता एक फटे हाल महिला घायल अवस्थामें सड़कके किनारे पड़ी हुई कराह रही थी। पासमें उसका अबोध शिशु

रहीम खानखाना अपने समयके उदार और दानीदे व्यक्तियोंमेंसे एक थे। वे बहुत बड़े गुणग्राहक और भगवद्भक्त थे। उन्होंने अपने जीवनकालमें

अहन्ताके त्यागसे ही जीवन्मुक्ति एक राजा था, वह अत्यन्त विचारशील था। एक बार वह विचार करते-करते व्याकुल हो उठा, उसे

भगवान् श्रीशंकराचार्यजीका लोकव्यवहार-बोध भगवान् श्रीशंकराचार्यजीने जहाँ एक और मुमुक्षुओंके कल्याणार्थ विवेकचूडामणि, अपरोक्षानुभूति, शतश्लोकी- जैसे प्रकरण-ग्रन्थोंका प्रणयन किया, वहीं दूसरी ओर

द्रौपदीके साथ पाण्डव वनवासके अन्तिम वर्ष अज्ञातवासके समयमें वेश तथा नाम बदलकर राजा विराटके यहाँ रहते थे। उस समय द्रौपदीने