अस्थिर दृष्टि
एक संतके यहाँ एक दासी तीस वर्षसे रहती थी, पर उन्होंने उसका मुँह कभी नहीं देखा था। एक दिन उन्होंने
एक संतके यहाँ एक दासी तीस वर्षसे रहती थी, पर उन्होंने उसका मुँह कभी नहीं देखा था। एक दिन उन्होंने
सुप्रसिद्ध विद्वान् सर रमेशचन्द्र दत्त इतिहासमर्मज्ञ पुरुष थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की थी। एक बार वे श्रीअरविन्दके पास गये
बात अठारहवीं शताब्दीकी है। पण्डित श्रीरामनाथ तर्कसिद्धान्तने अध्ययन समाप्त करके बंगालके विद्याकेन्द्र नवद्वीप नगरके बाहर अपनी कुटिया बना ली थी
नम्र बनो, कठोर नहीं ! एक चीनी सन्त बहुत बूढ़े हो गये। देखा कि अन्तिम समय निकट आ गया है,
‘मेरा धन्य भाग्य है, भगवान् विष्णुने मुझे राजा बनाकर मेरे हृदयमें अपनी भक्ति भर दी है!’ अनन्त शयनतीर्थमें शेषशायी विष्णुके
संवत् 1740 वि0 में गुजरात सौराष्ट्रमें भारी अकाल पड़ा था। अन्नके बिना मनुष्य और तृणके बिना पशु तड़प रहे थे।
एक धनी व्यापारी मुसाफिरीमें रात बितानेके लिये किसी छोटे गाँवमें एक गरीबकी झोंपड़ीमें ठहरा। वहाँसे जाते समय वह अपनी सोनेकी
वास्तविक स्वरूपसे परिचय एक गाँवमें गोपाल नामका चरवाहा बालक रहता था। वह प्रतिदिन अपनी भेड़ोंको चरागाहमें ले जाकर, सारे दिन
श्रीजीव गोस्वामीजीके समयकी बात है। उनके प्रेमी एक महात्मा कदमखंडीमें बैठे श्रीराधा-माधवकी मधुर लीलाका ध्यान कर रहे थे। उनको दिखायी
उससे वसन्त रूठ गया एक बगीचा शहरके बीचमें था। हरी घासका उसमें बहुत बड़ा लान था और चारों तरफ भाँति-भाँति