
संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता!
संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता! हयग्रीव नामक दैत्यके एक पुत्र था, जो ‘उत्कल’ नामसे प्रसिद्ध हुआ। उसने समरांगणमें

संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता! हयग्रीव नामक दैत्यके एक पुत्र था, जो ‘उत्कल’ नामसे प्रसिद्ध हुआ। उसने समरांगणमें

लगभग ढाई हजार वर्ष पहलेकी बात है। चीनके महान् तत्त्वविवेचक महात्मा कनफ्युसियसने घोड़ागाड़ीसे वी नगरमें प्रवेश ही किया था कि

एक संत थे। विचित्र जीवन था उनका। वे हरेकसे अपनेको अधम समझते और हरेकको अपनेसे उत्तम । घूमते-फिरते एक दिन

कलकत्तेके कुछ कॉलेजके विद्यार्थी वहाँका ‘फोर्ट विलियम’ किला देखने गये थे। सहसा उनके एक साथीके शरीरमें पीड़ा होने लगी। उसने

प्राचीन अरबनिवासियोंमें हातिम ताईका नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। वह अपनी अमित दातृत्व-शक्ति किंवा सतत दानशीलताके लिये बड़ा विख्यात था। एक

एक राजाको कोढ़की बीमारी हो गयी थी। वैद्योंने बताया कि मानसरोवरसे हंस पकड़वाकर मँगाये जायँ और उनके पित्तसे दवा बने

साधारण वेषमें असाधारण मनुष्य हुगली जिलेके किसी दूर-दराजके गाँवके एक स्कूलमें विद्यासागर आनेवाले हैं। गाँवभरके स्त्री-पुरुष टूट पड़े, सभी विद्यासागरको

नित्य प्रेरणादायी श्लोक भारतके महान् वीर, न्यायप्रिय, प्रतिभावान् और असाधारण विद्वान् राजा विक्रमादित्यको कौन नहीं जानता? उनकी स्मृतिमें चलनेवाले विक्रम

वनवासके समय पाण्डव द्वैतवनमें थे वनमें घूमते समय एक दिन उन्हें प्यास लगी। धर्मराज युधिष्ठिरने वृक्षपर चढ़कर इधर-उधर देखा। एक

पास आया और अत्यन्त कातर वाणीमें उसने पूछा ‘महात्मन्! प्रभु-प्राप्तिका मार्ग क्या है ?’ भगवान्को पानेके दो रास्ते हैं-संतने बताया।