
वैभवको धिक्कार है!
सम्राट् भरतको चक्रवर्ती बनना था। वे दिग्विजय कर चुके थे, किंतु अभी वह अधूरी थी; क्योंकि उनके छोटे भाई पोदनापुरनरेश

सम्राट् भरतको चक्रवर्ती बनना था। वे दिग्विजय कर चुके थे, किंतु अभी वह अधूरी थी; क्योंकि उनके छोटे भाई पोदनापुरनरेश

शूरसेन प्रदेशमें किसी समय चित्रकेतु नामक अत्यन्त प्रतापी राजा थे। उनकी रानियोंकी तो संख्या ही करना कठिन है, किंतु संतान

श्रेष्ठ पवित्रता क्या है ? एक समयकी बात है, एक संन्यासी था, जो संन्यासके हर नियम-कानूनको गम्भीरतासे मानता था। वह

हेमन्तकी संध्या थी, सूर्य अस्ताचलपर अदृश्य होनेवाले ही थे, पश्चिम गगनकी नैसर्गिक लालिमा अद्भुत और अमित मनोहारिणी थी। भगवान् बुद्ध

एक संतके यहाँ एक दासी तीस वर्षसे रहती थी, पर उन्होंने उसका मुँह कभी नहीं देखा था। एक दिन उन्होंने

सुप्रसिद्ध विद्वान् सर रमेशचन्द्र दत्त इतिहासमर्मज्ञ पुरुष थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की थी। एक बार वे श्रीअरविन्दके पास गये

बात अठारहवीं शताब्दीकी है। पण्डित श्रीरामनाथ तर्कसिद्धान्तने अध्ययन समाप्त करके बंगालके विद्याकेन्द्र नवद्वीप नगरके बाहर अपनी कुटिया बना ली थी

नम्र बनो, कठोर नहीं ! एक चीनी सन्त बहुत बूढ़े हो गये। देखा कि अन्तिम समय निकट आ गया है,

‘मेरा धन्य भाग्य है, भगवान् विष्णुने मुझे राजा बनाकर मेरे हृदयमें अपनी भक्ति भर दी है!’ अनन्त शयनतीर्थमें शेषशायी विष्णुके

संवत् 1740 वि0 में गुजरात सौराष्ट्रमें भारी अकाल पड़ा था। अन्नके बिना मनुष्य और तृणके बिना पशु तड़प रहे थे।