उल्लासके समय खिन्न क्यों
महाभारतके बुद्धका सत्रहवाँ दिन समाप्त हो गया था महारथी कर्ण रणभूमिमें गिर चुके थे शिविरमें आनन्दोत्सव हो रहा था। ऐसे
महाभारतके बुद्धका सत्रहवाँ दिन समाप्त हो गया था महारथी कर्ण रणभूमिमें गिर चुके थे शिविरमें आनन्दोत्सव हो रहा था। ऐसे
साइमन नामक एक प्रेमी व्यक्तिने महात्मा ईसामसीहको भोजनके लिये अपने घर निमन्त्रित किया। एक नगर-महिलाने साइमनके घरमें प्रवेश किया। उसने
शाबाश, अक्षयकुमार 21 दिसम्बर, 1953 ई0 की घटना है। उत्तर प्रदेशके गाजीपुर जिलेके गाँधीनगर कस्बेके पासकी। ताजपुर देहमा और करीमुद्दीनपुर
महात्मा श्रीसूरदासजी जन्मान्ध थे। एक बार वे अपनी मस्तीमें कहाँ जा रहे थे। रास्तेमें एक सूखा कु । वे उसमें
एक नैष्ठिक भक्त पण्डित थे। भक्त विमलतीर्थ उनके ही पुत्र थे। पिताने बाल्यकालमें इन्हें यथाविधि यज्ञोपवीतादि संस्कारोंसे संस्कृत कर दिया।
माताके सत्संगका गर्भस्थ शिशुके जीवनपर प्रभाव भक्तश्रेष्ठ प्रह्लादजीको दैत्यराज हिरण्यकशिपु भगवान्के स्मरण-भजनसे विरत करना चाहता था। उसकी धारणा थी कि
चीनके एक बादशाहके शासन कालमें प्रजाको अनेक प्रकारके कर देने पड़ते थे। बाहरसे आनेवाली वस्तुओंपर बड़ा शुल्क देना पड़ता था।
एक वीतराग संतका दर्शन करने वहाँके नरेश पधारे। साधु कौपीन लगाये भूमिमें ही अलमस्त पड़े थे। नरेशने पृथ्वीपर मस्तक रखकर
पूर्वानुमानका महत्त्व एक राजाको बन्दर पालनेका शौक था। उसका वह शौक ही उसका मनोरंजन था। वह समस्त प्रकारके बन्दरोंको एकत्रित
बोध-पीयूष-बिन्दु क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे॥ (हनुमन्नाटक 7/7) महापुरुषोंके कार्योंकी सफलता साधनोंमें नहीं, अपितु उनके आत्मबलमें निवास करती है। मनसि