
दुःखदायी परिहासका कटु परिणाम
पूर्वकालमें एक सहस्रपाद नामके ऋषिकुमार थे। उनमें सभी गुण थे केवल एक दुर्गुण था कि वे अपने मित्रों और साथियोंको

पूर्वकालमें एक सहस्रपाद नामके ऋषिकुमार थे। उनमें सभी गुण थे केवल एक दुर्गुण था कि वे अपने मित्रों और साथियोंको

मंदिरकी सम्पत्तिसे बना प्रसाद कैसे ग्रहण करूँ ? महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी अपने इष्टदेव श्रीनाथजीके विग्रहको प्रतिदिन खाद्य व्यंजनोंका भोग लगानेके बाद

मैं ही क्यों ? अमेरिकाके महान् टेनिस खिलाड़ी आर्थर ऐशको 1983 ई0 में हृदयकी सर्जरीके दौरान गलतीसे एड्स विषाणुसे संक्रमित

श्रीचैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरीसे दक्षिण भारतकी यात्रा करने निकले थे। उन्होंने एक स्थानपर देखा कि सरोवर के किनारे एक ब्राह्मण स्नान

महाभारतके बुद्धका सत्रहवाँ दिन समाप्त हो गया था महारथी कर्ण रणभूमिमें गिर चुके थे शिविरमें आनन्दोत्सव हो रहा था। ऐसे

साइमन नामक एक प्रेमी व्यक्तिने महात्मा ईसामसीहको भोजनके लिये अपने घर निमन्त्रित किया। एक नगर-महिलाने साइमनके घरमें प्रवेश किया। उसने

शाबाश, अक्षयकुमार 21 दिसम्बर, 1953 ई0 की घटना है। उत्तर प्रदेशके गाजीपुर जिलेके गाँधीनगर कस्बेके पासकी। ताजपुर देहमा और करीमुद्दीनपुर

महात्मा श्रीसूरदासजी जन्मान्ध थे। एक बार वे अपनी मस्तीमें कहाँ जा रहे थे। रास्तेमें एक सूखा कु । वे उसमें

एक नैष्ठिक भक्त पण्डित थे। भक्त विमलतीर्थ उनके ही पुत्र थे। पिताने बाल्यकालमें इन्हें यथाविधि यज्ञोपवीतादि संस्कारोंसे संस्कृत कर दिया।

माताके सत्संगका गर्भस्थ शिशुके जीवनपर प्रभाव भक्तश्रेष्ठ प्रह्लादजीको दैत्यराज हिरण्यकशिपु भगवान्के स्मरण-भजनसे विरत करना चाहता था। उसकी धारणा थी कि