मैं आपका पुत्र हूँ
महाराज छत्रसाल स्वयं नगरमें घूमते थे और प्रजाजनोंसे उनका कष्ट पूछते थे। ‘जिस राजाके राज्यमें प्रजाके लोग दुःख पाते हैं,
महाराज छत्रसाल स्वयं नगरमें घूमते थे और प्रजाजनोंसे उनका कष्ट पूछते थे। ‘जिस राजाके राज्यमें प्रजाके लोग दुःख पाते हैं,
एक राजा एक बार यज्ञ करने जा रहे थे। यज्ञमें बलि देनेके लिये एक बकरा उन्होंने मँगवाया। बकरा पकड़कर लाया
पराधीनतामें सुख कहाँ? एक मोटे-ताजे पालतू कुत्तेके साथ एक भूखे दुबले-पतले बाघकी भेंट हुई। प्रथम परिचय हो जानेके -‘भाई, एक
प्राचीन समयकी बात है। एक धनी व्यक्तिने एक हब्शीको नौकर रखा। उसने अपने जीवनमें हब्शी कभी पहले नहीं देखा था।
परमात्माकी मृत्यु इंग्लैण्ड में एक धर्मपरायण अंग्रेज दम्पती रहते थे। किसी व्यवसायमें घाटा पड़ जानेसे पति महोदय बड़े चिन्तित रहने
एक सेठजीने अन्नसत्र खोल रखा था। दानकी भावना तो कम थी, मुख्य भावना तो थी कि समाज उन्हें दानवीर समझे,
गुरुके अपमानसे पराभव इन्द्रको त्रिलोकीका ऐश्वर्य पाकर घमण्ड हो गया था। इस घमण्डके कारण वे धर्ममर्यादाका, सदाचारका उल्लंघन करने लगे
स्वामी शंकराचार्य दिग्विजय करते हुए काशी पधारे। शास्त्रार्थप्रेमी काशीके पण्डितोंसे उनका डटकर शास्त्रार्थ हुआ। शंकराचार्यसे ‘अद्वैतवाद’ के विषयमें काशीके पण्डितोंने
गुरु नानकदेव अपनी यात्रामें घूमते हुए एक ग्राममें रुके थे। उस दिन उनके पास गाँवका एक लुहार मक्केकी दो मोटी
नित्य प्रसन्न राम आज रो रहे हैं। माता कौसल्या उद्विग्र हो गयी हैं। उनका लाल आज किसी प्रकार शान्त नहीं