गुरुनिष्ठा
आर्यसमाजके प्रवर्तक स्वामी दयानन्दजीको बड़ी खोजके बाद विरजानन्द-ऐसे परम वेदज्ञ महात्माका दर्शन हुआ। विरजानन्द अंधे थे। उन्होंने दयानन्दको शिष्य बना
आर्यसमाजके प्रवर्तक स्वामी दयानन्दजीको बड़ी खोजके बाद विरजानन्द-ऐसे परम वेदज्ञ महात्माका दर्शन हुआ। विरजानन्द अंधे थे। उन्होंने दयानन्दको शिष्य बना
एक सुन्दरी बालविधवाके घरपर उसका गुरु आया। विधवा देवीने श्रद्धा-भक्तिके साथ गुरुको भोजनादि कराया। तदनन्तर वह उसके सामने धर्मोपदेश पानेके
एक अंग्रेज अफ़सर एक जगह बाँध बँधवाने आया । जिस दिन बाँधके पूरा होनेमें एक दिन बच रहा था, उसी
कर्मकी जड़ें (प्रो0 सुश्री प्रेमाजी पाण्डुरंगन ) एक हरा-भरा चरागाह था, जहाँ श्रीकृष्णकी गायें चरा करती थीं। आश्चर्यको बात यह
‘भगवान् बुद्धदेवकी जय ! ‘ गगन-मण्डल गूँज उठा तथागतके नामघोषसे। कितने दिनों बाद कपिलवस्तुके प्राणप्रिय नरेश शुद्धोदनके पुत्र सिद्धार्थ राजधानीमें
अफ्रीकामें कमेराका हब्शी राजा बहुत अभिमानी था, वह ऐश्वर्यके उन्मादमें सदा मग्न रहता था। लोग उससे बहुत डरते थे और
आत्महत्याका विचार उचित नहीं पूर्वकालमें काश्यप नामका एक तपस्वी व्यक्ति था । उसे धनके मदमें चूर किसी वैश्यने अपने रथके
उमा संत कइ इहड़ बड़ाई । मंद करत जो करइ भलाई ॥ -तुलसीदास नीरव निशीथ संत बायजीद कब्रिस्तान जा रहे
एक महात्मा थे। उन्होंने स्वयं ही यह घटना अपने एक मित्रको सुनायी थी। वे बोले-‘मेरी आदत है कि मैं तीन
महाराज भोजके नगरमें ही एक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे स्वयं याचना करते नहीं थे और बिना माँगे उन्हें दृव्य