
गुरुके अपमानसे पराभव
गुरुके अपमानसे पराभव इन्द्रको त्रिलोकीका ऐश्वर्य पाकर घमण्ड हो गया था। इस घमण्डके कारण वे धर्ममर्यादाका, सदाचारका उल्लंघन करने लगे

गुरुके अपमानसे पराभव इन्द्रको त्रिलोकीका ऐश्वर्य पाकर घमण्ड हो गया था। इस घमण्डके कारण वे धर्ममर्यादाका, सदाचारका उल्लंघन करने लगे

स्वामी शंकराचार्य दिग्विजय करते हुए काशी पधारे। शास्त्रार्थप्रेमी काशीके पण्डितोंसे उनका डटकर शास्त्रार्थ हुआ। शंकराचार्यसे ‘अद्वैतवाद’ के विषयमें काशीके पण्डितोंने

गुरु नानकदेव अपनी यात्रामें घूमते हुए एक ग्राममें रुके थे। उस दिन उनके पास गाँवका एक लुहार मक्केकी दो मोटी

नित्य प्रसन्न राम आज रो रहे हैं। माता कौसल्या उद्विग्र हो गयी हैं। उनका लाल आज किसी प्रकार शान्त नहीं

एक भक्तके एक ही पुत्र था और वह बड़ा ही सुन्दर, सुशील, धर्मात्मा तथा उसे अत्यन्त प्रिय था । एक

एक बार श्रीसूरदासजी बादशाह अकबरके दरबारमें विराज रहे थे। उनसे पूछा गया कि ‘कविता सर्वोत्तम किसकी है, निष्पक्ष भावसे बतलाइये।’

मेहनतसे बदली किस्मत बटोरनके पिता अव्वल दर्जेके आलसी थे। इसलिये उनकी माली हालत खराब थी। बटोरनका असली नाम बटोही था,

चार्ली, तूने यह क्या किया ? भारतकी सेवामें अपनेको खपा देनेवाले-‘दीनबन्धु’ एण्ड्रजका प्यारका नाम था ‘चार्ली’। गाँधीजी उन्हें इसी नामसे

एक दिन संत इब्राहिमने रास्तेमें एक मूच्छित शराबीको देखा। उसका शरीर धूलमें सन गया था, मुँहमें धूल लिपटी हुई थी

अहमदाबादके प्रसिद्ध संत सरयूदासजी महाराज एक बार रेलगाड़ीकी तीसरी श्रेणीमें बैठकर डाकोर जा रहे थे। गाड़ीमें बड़ी भीड़ थी। कहीं