जो तोकौं काँटा बुवै, ताहि बोइ तू फूल !
समर्थ रामदास शिष्योंके साथ शिवाजी महाराजके पास आ रहे थे। रास्तेमें ईखका खेत पड़ा। शिष्योंने गन्ने तोड़-तोड़कर चूस लिये। खेतका
समर्थ रामदास शिष्योंके साथ शिवाजी महाराजके पास आ रहे थे। रास्तेमें ईखका खेत पड़ा। शिष्योंने गन्ने तोड़-तोड़कर चूस लिये। खेतका
शिक्षककी परीक्षा एक गुरुकुल था। वहाँ पढ़नेवाले विद्यार्थी बड़े ज्ञानी होते थे। माता-पिता अपने बच्चोंको वहीं पढ़ाना चाहते थे। उस
हंगरीका राजा मत्थियस अपने गरियेको बहुत मानता था। वह कभी झूठ नहीं बोलता था। एक दिन प्रशियाके राजा मत्थियसके साथ
एक सज्जन पुरुषके सम्बन्धमें प्रख्यात था कि उन्हें क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोगोंको किसी संयमीको संयमच्युत करनेमें आनन्द
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी असीम उदारताके कारण कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया जब उनके पास इतने पैसे नहीं
एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न
दिव्यांग सहपाठीकी हँसी उड़ानेका फल आजसे लगभग पचास वर्ष पूर्व घटी एक घटनाको मैं भुला नहीं पा रहा हूँ; क्योंकि
जापानके सामन्तराज सातोमी बड़ी कठिनाईमें पड़ गये थे। शत्रु-सेनाने उनके दुर्गको तीन महीनेसे घेर रखा था। यह ठीक था कि
‘बहुत गयी थोड़ी रही” बात तबकी है, जब प्रथम जैन तीर्थंकर श्रीआदिनाथ पृथ्वीपर राज करते थे। राज करते-करते दीर्घकाल व्यतीत
‘साधन और अनुष्ठान तोथोंमें ही शीघ्र सफल होते हैं और उनका अक्षय फल होता है। इसी विचारसे साधु बाहिय सुप्पारक