
हृदय परिवर्तन
अंगुलिमालके नामके श्रवणमात्रसे ही समस्त कोशल राज्य त्रस्त और संतप्त हो उठता था । गुरुके दक्षिणा स्वरूप मैत्रायणीपुत्र वनमें रहता

अंगुलिमालके नामके श्रवणमात्रसे ही समस्त कोशल राज्य त्रस्त और संतप्त हो उठता था । गुरुके दक्षिणा स्वरूप मैत्रायणीपुत्र वनमें रहता

किसी शहरमें एक बड़ा धर्मात्मा राजा राज्य करता था। उसके दानधर्मका प्रवाह कभी बंद नहीं होता था। एक दिन उसके

सरदार पटेलकी कर्तव्यनिष्ठा सरदार पटेल अदालतमें एक फौजदारी मुकदमेकी पैरवी कर रहे थे। मामला गम्भीर था, उनकी जरा सी असावधानी

मिथ्या आलोचनाओंकी चिन्ता मत करो अमेरिकन राष्ट्रपति लिंकनके विरोधी अखबार जीखोलकर उनकी बुराई करते थे, किंतु लिंकन अविचलित भावसे अपने

आर्यसमाजके प्रवर्तक स्वामी दयानन्दजीको बड़ी खोजके बाद विरजानन्द-ऐसे परम वेदज्ञ महात्माका दर्शन हुआ। विरजानन्द अंधे थे। उन्होंने दयानन्दको शिष्य बना

एक सुन्दरी बालविधवाके घरपर उसका गुरु आया। विधवा देवीने श्रद्धा-भक्तिके साथ गुरुको भोजनादि कराया। तदनन्तर वह उसके सामने धर्मोपदेश पानेके

एक अंग्रेज अफ़सर एक जगह बाँध बँधवाने आया । जिस दिन बाँधके पूरा होनेमें एक दिन बच रहा था, उसी

कर्मकी जड़ें (प्रो0 सुश्री प्रेमाजी पाण्डुरंगन ) एक हरा-भरा चरागाह था, जहाँ श्रीकृष्णकी गायें चरा करती थीं। आश्चर्यको बात यह

‘भगवान् बुद्धदेवकी जय ! ‘ गगन-मण्डल गूँज उठा तथागतके नामघोषसे। कितने दिनों बाद कपिलवस्तुके प्राणप्रिय नरेश शुद्धोदनके पुत्र सिद्धार्थ राजधानीमें

अफ्रीकामें कमेराका हब्शी राजा बहुत अभिमानी था, वह ऐश्वर्यके उन्मादमें सदा मग्न रहता था। लोग उससे बहुत डरते थे और