
आत्महत्याका विचार उचित नहीं
आत्महत्याका विचार उचित नहीं पूर्वकालमें काश्यप नामका एक तपस्वी व्यक्ति था । उसे धनके मदमें चूर किसी वैश्यने अपने रथके

आत्महत्याका विचार उचित नहीं पूर्वकालमें काश्यप नामका एक तपस्वी व्यक्ति था । उसे धनके मदमें चूर किसी वैश्यने अपने रथके

उमा संत कइ इहड़ बड़ाई । मंद करत जो करइ भलाई ॥ -तुलसीदास नीरव निशीथ संत बायजीद कब्रिस्तान जा रहे

एक महात्मा थे। उन्होंने स्वयं ही यह घटना अपने एक मित्रको सुनायी थी। वे बोले-‘मेरी आदत है कि मैं तीन

महाराज भोजके नगरमें ही एक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे स्वयं याचना करते नहीं थे और बिना माँगे उन्हें दृव्य

समर्थ रामदास शिष्योंके साथ शिवाजी महाराजके पास आ रहे थे। रास्तेमें ईखका खेत पड़ा। शिष्योंने गन्ने तोड़-तोड़कर चूस लिये। खेतका

शिक्षककी परीक्षा एक गुरुकुल था। वहाँ पढ़नेवाले विद्यार्थी बड़े ज्ञानी होते थे। माता-पिता अपने बच्चोंको वहीं पढ़ाना चाहते थे। उस

हंगरीका राजा मत्थियस अपने गरियेको बहुत मानता था। वह कभी झूठ नहीं बोलता था। एक दिन प्रशियाके राजा मत्थियसके साथ

एक सज्जन पुरुषके सम्बन्धमें प्रख्यात था कि उन्हें क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोगोंको किसी संयमीको संयमच्युत करनेमें आनन्द

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी असीम उदारताके कारण कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया जब उनके पास इतने पैसे नहीं

एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न