यूनानकी बोधपरक लोककथाएँ
यूनानकी बोधपरक लोककथाएँ यूनान और भारतके सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीनकालसे रहे हैं। विश्वकी प्राचीन सभ्यताओंमें यूनान और भारतकी सभ्यताओंकी गणना होती
यूनानकी बोधपरक लोककथाएँ यूनान और भारतके सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीनकालसे रहे हैं। विश्वकी प्राचीन सभ्यताओंमें यूनान और भारतकी सभ्यताओंकी गणना होती
माता जीजाबाई महाराष्ट्रके एक गाँवमें एक छोटी-सी बच्ची खेल रही थी। अकस्मात् कुछ यवन सैनिक एक मन्दिरको तोड़नेके लिये आ
एक बारकी बात है। सुफियानने महात्मा फजलके साथ सारी रात धर्मचर्चामें बितायी। दूसरे दिन चलते समय उन्होंने बड़ी प्रसन्नताके साथ
परमात्माके भक्ति-साम्राज्यमें निवास करनेवाले संत सदा अभय होते हैं। वे किसीसे भी नहीं डरते। सोलह सौ वर्ष पहलेकी एक घटना
एक संत कपड़े सीकर अपना निर्वाह करते थे। एक ऐसा व्यक्ति उस नगरमें था जो बहुत कपड़े सिलवाता था और
पशुओंपर क्रूरतासे अनिष्टकी प्राप्ति सवाई माधोपुर जिलेमें खण्डार तहसीलके बालेर ग्रामकी घटना है। वहाँके रहनेवाले शर्माजी, जो अंग्रेजीके व्याख्याता थे,
श्रीवृन्दावनधामके बाबा श्रीश्रीरामकृष्णदासजी महाराज हेही उच्चकोटिके महापुरुष थे। आप गौड़ीय सम्प्रदायके महान् विद्वान्, घोर त्यागी, तपस्वी संत थे। आप प्रातःकाल
नर्मदा तटपर माहिष्मती नामकी एक नगरी है। वहाँ माधव नामके एक ब्राह्मण रहते थे। उन्होंने अपनी विद्याके प्रभावसे बड़ा धन
ग्रीष्मकी भयंकर ज्वालासे प्राणिमात्र संतप्त थे। सरोवरों, नालों और बावलियोंका जल सूख गया था; वृक्ष तपनसे दग्ध थे, जीव -जन्तु
किसी समय महर्षि वसिष्ठजी विश्वामित्रजीके आश्रमपर पधारे। विश्वामित्रजीने उनका स्वागत-सत्कार तो किया ही, आतिथ्यमें अपनी एक सहस्र वर्षकी तपस्याका फल