
व्रजवासियोंके टुकड़ोंमें जो आनन्द है
श्रीवृन्दावनधामके बाबा श्रीश्रीरामकृष्णदासजी महाराज हेही उच्चकोटिके महापुरुष थे। आप गौड़ीय सम्प्रदायके महान् विद्वान्, घोर त्यागी, तपस्वी संत थे। आप प्रातःकाल

श्रीवृन्दावनधामके बाबा श्रीश्रीरामकृष्णदासजी महाराज हेही उच्चकोटिके महापुरुष थे। आप गौड़ीय सम्प्रदायके महान् विद्वान्, घोर त्यागी, तपस्वी संत थे। आप प्रातःकाल

नर्मदा तटपर माहिष्मती नामकी एक नगरी है। वहाँ माधव नामके एक ब्राह्मण रहते थे। उन्होंने अपनी विद्याके प्रभावसे बड़ा धन

ग्रीष्मकी भयंकर ज्वालासे प्राणिमात्र संतप्त थे। सरोवरों, नालों और बावलियोंका जल सूख गया था; वृक्ष तपनसे दग्ध थे, जीव -जन्तु

किसी समय महर्षि वसिष्ठजी विश्वामित्रजीके आश्रमपर पधारे। विश्वामित्रजीने उनका स्वागत-सत्कार तो किया ही, आतिथ्यमें अपनी एक सहस्र वर्षकी तपस्याका फल

स्काटलैंडके एक नगर में विपत्तिको मारी एक दरिद्र स्त्री आयी। उसके पास न रहनेको स्थान था और न भोजनको अन्न।

लाला बलदेवसिंहजी देहरादूनके रईस थे। वे प्राणिमात्रमें भगवान्की ज्योतिका निरन्तर अनुभव करते थे। प्रेम-तत्त्वका उच्चकोटिका अनुभव उन्हें प्राप्त था। प्राणिमात्रसे

साधनाकी तन्मयता महान् चित्रकार ‘आगस्टी केन्वायर’ जितने अधिक वृद्ध होते गये, उतना ही उनका कला-प्रेम बढ़ता गया। युवावस्थामें वे एक

बाबरका पिता उमरशेख समरकंदका राजा था। वह अपनी न्यायप्रियताके लिये बड़ा प्रसिद्ध था। एक बार चीनी यात्रियोंका एक समुदाय पूर्वसे

‘सबहि नचावत रामु गोसाईं ‘ कठपुतलियोंको नृत्य-अभिनय करते-करते काफी समय हो गया। एक दिन कुछ कठपुतलियोंको अपने नृत्य कौशलपर अभिमान

नदीने सिखाया राजा कुमारसेन क्रूर और अभिमानी था। उसका मन्त्री सुमन्तसेन चतुर, व्यावहारिक और हाजिरजवाब था। एक दिन राजा कुमारसेनने