गरीबोंकी सेवा
गरीबोंकी सेवा एक बार महात्मा गौतम बुद्धने उपदेश देते हुए कहा-‘देशमें अकाल पड़ा है। लोग अन्न एवं वस्त्रके लिये तरस
गरीबोंकी सेवा एक बार महात्मा गौतम बुद्धने उपदेश देते हुए कहा-‘देशमें अकाल पड़ा है। लोग अन्न एवं वस्त्रके लिये तरस
महात्मा रामलिङ्गम् इस बातको सोचकर सदा | वे खिन्न रहते थे कि मेरे पापोंका क्षय नहीं हो रहा है। वे
पापका फल स्वयंको ही भोगना पड़ता है प्राचीन कालमें सुमति नामक एक भृगुवंशी ब्राह्मण थे। उनकी पत्नी कौशिकवंशकी कन्या थी।
प्रसिद्ध संत महात्मा रूपकलाजीके बचपनकी बात है। वे उस समय प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। वे अपने दो- तीन
समुद्रतटके किसी नगरमें एक धनवान् वैश्यके पुत्रोंने एक कौआ पाल रखा था। वे उस कौएको बराबर अपने भोजनसे बचा अन्न
एक महात्मा बड़ी सुन्दर वेदान्तकी कथा कहा करते। बहुत नर-नारी सुनने जाते। उनमें एक गरीब राजपूत भी था जो आश्रमके
कहा जाता है कि बचपनमें पण्डित बोपदेवजीकी स्मरणशक्ति अत्यन्त क्षीण थी। वे बहुत परिश्रम करते थे, किंतु व्याकरणके सूत्र उन्हें
भोगासक्तिका दुष्परिणाम विरोचनकुमार बलिका एक बलवान् पुत्र था, जिसका नाम था- साहसिक । वह अपनी स्त्रियोंके साथ गन्धमादनपर्वतपर विहार कर
एक बार महाराज जनकने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। उसमें उन्होंने एक बार एक सहस्र सोनेसे मढ़े हुए सींगोंवाली बढ़िया
ह्वाइटहेवनमें वेलिंगटन नामक एक कोयलेकी खान थी। उसके निकट ही दो-तीन झोंपड़ियाँ थीं। एक झोंपड़ीमें अपनी माँ और दो बहिनोंके