संतका सम्पर्क
संत त्यागराजके जीवनकी एक घटना है। उनकी राम-भक्ति और दिव्य संगीत-माधुरीसे जिस समय समस्त दक्षिण भारत भागवतरसमें निमग्न हो रहा
संत त्यागराजके जीवनकी एक घटना है। उनकी राम-भक्ति और दिव्य संगीत-माधुरीसे जिस समय समस्त दक्षिण भारत भागवतरसमें निमग्न हो रहा
भक्त भानुदास सदैव हरिभजनमें रमे रहते। जबतक माता-पिता जीवित रहे, भानुदासकी पत्नी तथा बाल बच्चोंका पालन-पोषण करते रहे; पर उनके
इटलीके क्रेसिन नामक किसानने अपने उद्योगके बदौलत इतनी अच्छी पैदावार की कि लोगोंको अत्यन्त आश्चर्य होने लगा। उन्होंने सोचा- निश्चय
एक भक्त ब्राह्मणदम्पति थे। उनके मनमें सदा यह इच्छा बनी रहती थी कि ‘हम कहाँ जायँ जिससे हमें भगवान्के दर्शन
पण्डित श्रीरामजी महाराज संस्कृतके महान् धुरन्धर विद्वान् थे संस्कृत आपकी मातृभाषा थी। आपका सारा परिवार संस्कृतमें ही बातचीत करता था
अनीति श्रुतायुधके पास शंकरजीके वरदानसे प्राप्त एक अमोघ गदा थी। उसके तपसे प्रसन्न होकर भगवान्ने यह उपहार उसे इस शर्तपर
नाममें क्या रखा है एक जातक कथा है। किसी दम्पतीने अपने पुत्रका नाम ‘पापक’ रख दिया था। बच्चा बड़ा हुआ
परम भक्त तुलाधार शूद्र बड़े ही सत्यवादी, वैराग्यवान् तथा निर्लोभी थे। उनके पास कुछ भी संग्रह नहीं था। तुलाधारजीके कपड़ोंमें
नामदेवकी पत्नी राजाई अपनी सहेली परिसा भागवतकी पत्नीके पास गयी। घरेलू सुख-दुःखकी। कथाके प्रसङ्गमें राजाईने अपने घरकी अत्यधिक विपन्नताकी राम
छलपूर्वक असत्य भाषण करनेसे नरक-दर्शन धर्मराज युधिष्ठिरने स्वर्गमें जानेके पश्चात् देखा कि दुर्योधन स्वर्गीय शोभासे सम्पन्न हो देवता और साध्यगणोंके