
आत्मगौरवका आनन्द
आत्मगौरवका आनन्द राजा भोजने नगरवासियोंको एक सार्वजनिक भोज दिया। लाखों लोग भाँति-भाँतिके मिष्टान्नों-पकवानोंको उदरस्थकर तृप्त हुए। अपनी उदारताकी चर्चा एवं

आत्मगौरवका आनन्द राजा भोजने नगरवासियोंको एक सार्वजनिक भोज दिया। लाखों लोग भाँति-भाँतिके मिष्टान्नों-पकवानोंको उदरस्थकर तृप्त हुए। अपनी उदारताकी चर्चा एवं

पिताने अपने नन्हे से पुत्रको कुछ पैसे देकर बाजार भेजा फल लानेके लिये। बच्चेने रास्तेमें देखा, कुछ लोग, जिनके बदनपर

दानका अनुपम उदाहरण एक दिन किसी बुढ़ियाने एक दरवाजेपर भीखके लिये याचना की। एक बालकने आकर बुढ़िया की दयनीय दशा

भारद्वाज नामका एक ब्राह्मण भगवान् बुद्धसे दीक्षा लेकर भिक्षु हो गया था। उसका एक सम्बन्धी इससे अत्यन्त क्षुब्ध होकर तथागतके

ज्ञानका मोल चीनी यात्री ह्यू-एन-त्सांगने नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा पूर्णकर कुछ दिनोंतक अध्यापन कार्य भी किया। तत्पश्चात् उसने स्वदेश जानेका

संत- मण्डलीके साथ ज्ञानेश्वर महाराज गोरा कुम्हारके घर आये। नामदेव भी साथ थे। ज्ञानदेवने गोरासे कहा तुम कुशल कुम्भकार हो

हकीम लुकमान बचपनमें गुलाम थे। एक दिन उनके स्वामीने एक ककड़ी खानी चाही मुँहमें लगाते ही जान पड़ा कि ककड़ी

महात्मा गांधीजीने कहा है- ‘मैंने गुरु नहीं बनाया; किंतु मुझे कोई गुरु मिले हैं तो वे हैं- रायचंद भाई।’ ये

लगभग पचास वर्ष पहलेकी बात है। दक्षिण भारतके प्रसिद्ध संत औलिया साईं बाबाने अध्यात्म जगत् में बड़ा नाम कमाया। एक

सत्याचरणका प्रभाव दिव्यक नामक एक व्यक्ति भगवान् बुद्धकी ख्याति सुनकर उनके पास पहुँचा। उनके दर्शनसे उसे अपार शान्ति मिली। उसने