ज्ञानका मोल
ज्ञानका मोल चीनी यात्री ह्यू-एन-त्सांगने नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा पूर्णकर कुछ दिनोंतक अध्यापन कार्य भी किया। तत्पश्चात् उसने स्वदेश जानेका
ज्ञानका मोल चीनी यात्री ह्यू-एन-त्सांगने नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा पूर्णकर कुछ दिनोंतक अध्यापन कार्य भी किया। तत्पश्चात् उसने स्वदेश जानेका
संत- मण्डलीके साथ ज्ञानेश्वर महाराज गोरा कुम्हारके घर आये। नामदेव भी साथ थे। ज्ञानदेवने गोरासे कहा तुम कुशल कुम्भकार हो
हकीम लुकमान बचपनमें गुलाम थे। एक दिन उनके स्वामीने एक ककड़ी खानी चाही मुँहमें लगाते ही जान पड़ा कि ककड़ी
महात्मा गांधीजीने कहा है- ‘मैंने गुरु नहीं बनाया; किंतु मुझे कोई गुरु मिले हैं तो वे हैं- रायचंद भाई।’ ये
लगभग पचास वर्ष पहलेकी बात है। दक्षिण भारतके प्रसिद्ध संत औलिया साईं बाबाने अध्यात्म जगत् में बड़ा नाम कमाया। एक
सत्याचरणका प्रभाव दिव्यक नामक एक व्यक्ति भगवान् बुद्धकी ख्याति सुनकर उनके पास पहुँचा। उनके दर्शनसे उसे अपार शान्ति मिली। उसने
दुर्योधनके कपट- द्यूतमें सर्वस्व हारकर पाण्डव द्रौपदीके साथ काम्यकवनमें निवास कर रहे थे। परंतु दुर्योधनके चित्तको शान्ति नहीं थी। पाण्डवोंको
बहुत पहले अयोध्यामें एक राजा रहते थे ऋतध्वज महाराज रुक्माङ्गद इनके ही पुत्र थे। ये बड़े प्रतापी और धर्मात्मा थे।
शास्त्रीजीका कोट बात उन दिनोंकी है, जब लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय मन्त्री थे। सादगी और ईमानदारीमें शास्त्रीजी बेजोड़ थे। एक बारकी
चम्पा नगरीके व्यापारी माकंदीके पुत्र जिनपालित और जिनरक्षित बार-बार जलयानसे समुद्री यात्रा करते थे। समुद्री व्यापारमें उन्होंने पर्याप्त धन एकत्र