धनलक्ष्मी स्तोत्रम्
।। ।। धनदा उवाचदेवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाचब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव
।। ।। धनदा उवाचदेवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्।।१।। देव्युवाचब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्।।२।। शिव
महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र भगवान शिव की प्रसन्नता एवं धन वैभव प्राप्ति के लिए यह अचूक उपाय है।
जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता
।। विन्ध्येश्वरी स्तोत्र ।। इस स्तोत्र का नौ दिन ११, २१ या ५१ पाठ पूरी श्रद्धा से करने पर अपार
गजाननाय गांगेय सहजाय सर्दात्मने।गौरी प्रियतनूजाय गणेषयास्तु मंगलम।।१।। नागयज्ञोपवीताय नतविध्न विनाशिने।नन्द्यादिगणनाथाय नायाकायास्तु मंगलम।।२।। इभवक्त्राय चंद्रादिवन्दिताय चिदात्मने।ईशान प्रेमपात्राय चेष्टादायास्तु मंगलम।।३।। सुमुखाय सुशुन्डाग्रोक्षिप्तामृत
सीता गायत्रीमंत्र से बढ़ती है तप की शक्ति- ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।। ब्रह्ममहेन्द्रसुरेन्द्रमरुद्गण रुद्रमुनीन्द्रगणैरतिरम्यं,क्षीरसरित्पतितीरमुपेत्य नुतं हि
।। ॐ नमः आद्यायै। शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि आद्या स्तोत्रं महाफलम्।यः पठेत् सततं भक्त्या स एव विष्णुवल्लभः।।१।। मृत्युर्व्याधिभयं तस्य नास्ति किञ्चित्
अस्य श्रीमातङ्गी शतनाम स्तोत्रस्य भगवान्मतङ्ग ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः मातङ्गी देवता मातङ्गीप्रीतये जपे विनियोगः। महामत्तमातङ्गिनी सिद्धिरूपातथा योगिनी भद्रकाली रमा च।भवानी भवप्रीतिदा
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमद्भगवद गीता’ के तीसरे अध्याय में गजेंद्र स्तोत्र पढ़ने को मिलता है। इसमें कुल ३३
नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पेनमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्देनमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।। नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपेनमस्ते महायोगिनि ज्ञानरूपे।नमस्ते नमस्ते सदानन्दरूपेनमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।। अनाथस्य