जीवन में ध्यान का महत्व

आज का प्रभु संकीर्तन।
जीवन में ध्यान का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।हमारे ऋषि मुनियों ने ध्यान के बल ही परमात्मा को पाया है।
ध्यान के अनुभव निराले हैं। जब मन मरता है तो वह खुद को बचाने के लिए पूरे प्रयास करता है। जब विचार बंद होने लगते हैं तो मस्तिष्क ढेर सारे विचारों को प्रस्तुत करने लगता है। जो लोग ध्यान के साथ सतत ईमानदारी से रहते हैं वह मन और मस्तिष्क के बहकावे में नहीं आते हैं, लेकिन जो बहकावे में आ जाते हैं वह कभी ध्यानी नहीं बन सकते।
जैसा ध्यान होता हैं वैसा ही सृजन होता हैं,जैसी दृष्टि होती हैं वैसी ही सृष्टि हो जाती हैं,
किसी विषय, वस्तु, व्यक्ति पर हमारा जैसा ध्यान होता हैं वो हमारे लिये वैसा ही हो जाता हैं।
जैसे एक पत्थर की मूर्ति पर हमारा ध्यान भगवान का होता हैं तो मूर्ति भगवान बन जाती हैं, एक निर्जीव पत्थर भी हमारे सकारात्मक ध्यान के चलते हमारी मन्नते पूरी करने लग जाता हैं, और जिसका ध्यान जितने गहरे विश्वास के साथ होता हैं उतने ही उसे शीघ्र परिणाम भी मिलने लगते हैं।
ठीक इसी तरह किसी व्यक्ति के प्रति हमारा ध्यान जैसा होता हैं वो हमारे लिये वैसा ही हो जाता हैं।जैसे किसी व्यक्ति को हम गुरु मान लेते हैं, तो वह व्यक्ति एक गुरु की भांति हमारा मार्गदर्शन करता हैं।पर ऐसे में हमारे मन मे उस गुरु के प्रति बुरे भाव हो जाते हैं तो हमारे ध्यान की ऊर्जा से वह गुरु भी हमारा मार्गदर्शन वैसा ही करता हैं।सबकुछ मन के ध्यान से होता हैं।गुरु भले ही कोई शरीरधारी प्राणी हो…पर मूल रुप से गुरु तो मन का भाव होता हैं…जैसे पत्थर की मूर्ति भगवान नही होती….
वह हमारे मन का भाव होता हैं…
ठीक ऐसे ही गुरु सिर्फ मन का भाव होता हैं…और जैसे एक पत्थर की मूर्ति पर हमारा गहरा विश्वास जितने अच्छे परिणाम देता हैं, ठीक इसी तरह मन का विश्वास गुरु पर जितना गहरा होता है, आपके मन के उसी गहरे विश्वास के चलते गुरु आपका बेहतरीन मार्गदर्शन करता हैं।
हमारे हिन्दू धर्म में इसी ध्यान के सिद्धांत के चलते भोजन को हाथ जोड़कर प्रसाद का भाव धरकर ग्रहण करने की बात कही जाती हैं, इस ध्यान से भोजन करने से भोजन में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती हैं।जब व्यक्ति का समय बुरा आता हैं तो उस व्यक्ति के ध्यान में बुरे भाव इतनी सूक्ष्मता के साथ पैदा होते हैं कि उसे उसका भान ही नही रहता उसका ध्यान बुरा होने लगा हैं। परीक्षा के समय हर माता-पिता हमेशा यही चाहते हैं कि उनकी सन्तान अच्छे नम्बरों से पास हो, पर अंतर्मन में भय इस बात का भी होता हैं कि कहीं बच्चा फेल न हो जाये ? ऐसे में फेल हो जाने वाले विचार पर माता-पिता का ध्यान अधिक हो जाता हैं तो ना चाहते हुए भी सन्तान उन परिणाम को प्राप्त होती हैं।जीवन मे सफल होना हैं तो हर विषय, वस्तु, व्यक्ति के प्रति भावों का सुंदर होना बहुत जरूरी हैं। और जीवनभर हमारे भाव अच्छे बने रहे इसका सबसे सरल उपाय हैं सत्संग।*सत्संग से विचारों में सकारात्मकता बढ़ती हैं, संसार की हर विषय, वस्तु, व्यक्ति के प्रति हमारा ध्यान सकारात्मक होता हैं, और ईश्वर के प्रति हमारा यह भाव पुष्ट होता हैं वो जो भी कर रहा हैं उसके पीछे कहीं न कहीं हमारा हित ही छुपा हुआ हैं।(साभार:अज्ञात)
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।🙏🏻🌹

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