प्रभु संकीर्तन 64

“जीवन”में”पीछे”देखो”अनुभव” मिलेगा “जीवन में”आगे” देखो तो “आशा” मिलेगी”दायें” बायें”देखो तो “सत्य” मिलेगा

“स्वयं”के”अंदर” देखो तो “परमात्मा और “आत्मविश्वास” मिलेगा”मित्रता”और अच्छे

“संबंध” किसी “कीमती”पुस्तक की भांति होते हैं इसको जलाने में महज कुछ मिनट लगते हैं किन्तु लिखने में वर्षों लग जाते हैं

भीतर शून्य बाहर शून्य शून्य चारों ओर है मैं नही हूँ मुझमे फिर भी मैं मैं का ही शोर है जमीर हमेशा सच्चाई से महकते रहना चाहिये

क्यूँ की कागज़ के फूलों पर तितलियां नही बैठा करती हैं किस हद तक जाना हैं?किस मंजिल को पाना हैं?ये कौन जानता हैं?जिंदगी के दो पल जी भर के जी लो किस रोज़ बिछड जाना हैं?कौन जानता है?जय श्री राम
शुभ प्रभात

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