नम: शिवाय श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः!!ॐ श्री काशी विश्वनाथ विजयते
सर्वविपदविमोक्षणम्
क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जन: किं करिष्यति ।
अतॄणे पतितो वन्हि: स्वयमेवोपशाम्यति ॥
अर्थ:- क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में हो, उसका दुर्जन क्या कर सकता है ? अग्नि, जब किसी जगह पर गिरती है जहाँ घास न हो, अपने आप बुझ जाती है ।
ग्रन्थानभ्यस्य मेघावी ज्ञान विज्ञानतत्पर: ।
पलालमिव धान्यार्थी त्यजेत् सर्वमशेषत: ॥
अर्थ:- बुद्धीमान मनुष्य जिसे ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र इच्छा है, वह ग्रन्थो में जो महत्वपूर्ण विषय है । उसे पढकर उस ग्रन्थका सार जान लेता है, तथा उस ग्रन्थ के अनावष्यक बातों को छोड़ देता है, उसी तरह जैसे किसान केवल धान्य उठाता है । *“सब ते सेवक धर्म कठोरा”*
मङ्गल हो आप सभी अध्यात्म मार्ग के पथिकों का