,,भरत,, शब्द से,श्री मानस में आई हुई चौपाई दोहे आदि क्रमवार,

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बाल काण्ड।।

1,,भरत सुभाउ सुसीतलताई,
सदा एकरस,बरनि न जाई ।।

2,,भरत सत्रहुँन दूनऊं भाई ,
प्रभु सेवक जसि प्रीति बडाई ।।

3,, भरत सकल साहनी बोलाए,
आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए।।

4,,भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा,
लिए उठाइ लाइ उर रामा।। बालकान्ड पूर्ण
अयोध्याकाण्ड ।।
5,,भरतु रामही की अनुहारी,
सहसा लखि न सकहिं नर नारी।।

6,,भरत सरिस प्रिय को जग माहीं,
इहइ सगुन फल दूसर नाहीं।।

7,,भरत आगमनु सकल मनावहि,
आवहुं बेगि नयन फलु पावहिं।।

8,,भरत मातु पहिं गइ बिलखानी,
का अनमनि हसि कह हसिं रानी।।

9,,भरत की राउर पूत न होहीं,
आनेहु मोल बेसाहि कि मोही।।

10,,भरतु प्रानप्रिय पावहिं राजू,
बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजू।।

11, भरत न मोहि प्रिय राम समाना,
सदा कहहु यहु सबु जगु जाना।।

12,,भरतहिं अवसि देहु जुबराजू,

कानन काह राम कर काजू।।

13,, भरत दुखित परिवारु निहारा,
मानहुं तुहिन बनज बनु
मारा।।

14,,दोहा,,,

भरतहिं बिसरेउ पितु मरन ,सुनत राम बन गौनु।
हेतु अपनपउ जानि जियँ,थकित रहे धरि मौनु।।
15,, भरत दयानिधि दीन्ह छडाई,
कौसल्या पहिं गे दोउ भाई।।

16,,भरतहिं देखि मातु उठि धाई,
मुरछित अवनि परी झइं आई।।

17,,भरतहुं मातु सकल समुझाई,

कहि पुरान श्रुति कथा सुहाई।।

18,,भरत बशिस्ठ निकट बैठारे,
नीति धरममय बचन उचारे।।

19,,सोरठा,,,

भरतु कमल कर जोरि,धीर धुरंधर धीर धरि।
बचन अमिअं जनु बोरि, देत उचित उत्तर सबहिं।।

आप सभी बंधुओ को हमारी सादर,,रामराम,, स्वीकार हो।।
श्री राम जय राम,जय जय राम।।
।।जय श्री हरि।।

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