शरीर में आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है

जो बात युक्ति ( दृष्टांत ) से समझ में आ जाए !
उसमें वैदिकमंत्रों की कोई आवश्यकता नहीं होती !!!
एक महात्मा जी ने एक दृष्टांत सुनाया था
एक सेठ जी थे, वह मर गये! और उनके बेटों का ब्यापार ठीक से चला नहीं, उन्हें पैसे की बहुत तंगी हो गई।

उसने अपने पिता जी के एक मित्र को अपनी समस्या बताई । तो पिता के मित्र ने कहा —-

मैं आपके पिताजी का मित्र हूँ, ऐसा हो नहीं सकता, कि वह अपने पीछे कुछ छोड़ नहीं गये हों ! तुम उनकी डायरी लाओ !
बेटों ने कहा —
वो तो डायरी लिखते ही नहीं थे !
मित्र ने कहा — आप उनके पुराने बही खातों के बण्डल ले आवो ।
बेटों ने बही खातों के बण्डल लाकर दिए !

उसने अपने आदमियों से सभी पुराने बही खाते ढुँढ़वाए ! तो एक स्थान पर इशारे में कुछ लिखा था, कि इस स्थान पर ५० किलो सोना गड़ा है ! उस स्थान पर खुदाई हुई, तो एक बड़ा बक्सा ताला लगा हुआ मिला। परन्तु उसे खोलने पर उसमें कुछ नहीं मिला !

मित्र ने कहा – मैं अपने मित्र को जानता हूँ। वो झूठ तो नहीं लिख सकते! हमें सोचने का समय दो !

फिर मित्र ने सोनार बुलवाकर बक्से की जांच कसौटी पर करवाई! और मित्र के बेटों को बुलाकर कहा — मिल गया सोना !!! उन लोगों ने कहा — कहां है सोना ? बॉक्स तो बिल्कुल खाली है !!!

मित्र ने कहा –अरे भई! बक्सा ही सोना है !!! फिर जब उसे रगड़कर साफ किया ! तो बक्से में कुन्दन की सी चमक आ गई !!!

इसी प्रकार से यदि आप इस शरीर के अन्दर आत्मा को ढूँढ़ोगे ! तो खाली बक्से की तरह आपके हाथ कुछ लगने वाला नहीं है ! नारायण !

जैसे घड़े में मिट्टी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, वैसे ही इस शरीर में आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

निराकार जल को चाहे जितने प्रकार के पात्रों में रख दो, तो वह जल उसी पात्र का आकार धारण कर लेता है ।

विचार कीजिए ! हमारे और आपके शरीर भी पात्र ही हैं, इस शरीर रूपी पात्र के अंदर निराकार ब्रह्म भी शरीराकार दिखाई देता है।

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