हीरे की किमत

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एक बार एक राज महल में कामवाली का लड़का खेल रहा था. खेलते खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ गया. वो दौड़ता दौड़ता अपनी माँ के पास ले गया. माँ ने देखा और समझ गयी की ये हीरा है तो उसने झूठमुठ का बच्चे को कहा की ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उस हीरे को महल के बहार फेक दिया.

और थोड़ी देर के बाद वो बहार से हीरा उठा कर चली गयी. और उसने उस हीरे को एक सोनी को दिखाया, सोनी ने भी यही कहा ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने भी बहार फेक दिया, वो औरत वहां से चली गयी बाद में उस सोनी ने वो हीरा उठा लिया और जौहरी के पास गया. और जौहरी को दिखाया।

जौहरी को पता चल गया की ये तो एक नायाब हीरा है और उसकी नियत बिगड़ गयी और उसने भी वो सोनी को कहा की ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उठा के बहार फेक दिया, वहा गिरते ही वो हीरा टूट कर बिखर गया.

एक आदमी पूरा वाकिया देख रहा था, उसने जाके हीरे को पूछा, जब तुम्हे दो बार फेका गया तब नहीं टूटे और तीसरी बार क्यों टूट गए?

हीरे ने जवाब दिया: ना वो औरत मेरी कीमत जानती थी ना ही वो सोनी। मेरी सही कीमत वो जौहरी ही जानता था. और उसने जानते हुए भी मेरी कीमत कांच की बना दी बस मेरा दिल टूट गया और में टूट के बिखर गया.

जब किसी इन्सान की सही कीमत जानते हुए भी लोग नाकारा कहते है तो वो भी हीरे की तरह टूट जाता है ।
जय श्री राम

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